रेशमा
रेशमा
"आजा रे....प्यार पुकारे....नैना तो रो-रो हारे....कोई ना जाने दर्द मेरा....आजा रे...."....रेशम बडी इत्मीनान से अपने कमरे मॆं दीवार पर लगे शीशे के सामने खड़ी होकर अपनी कलाई पर घड़ी बाँध रही थी और सलोनी जो काफी देर से उसके पास खड़ी उसे देख रही थी ।
लेकिन रेशम का ध्यान ही नहीँ गया उस पर,सलोनी ही मजाक बनाते हुये उसे चिढाया "ओह मेरी लता मंगेशकर..... ये आज सवेरे-सवेरे किसे पुकारा जा रहा है इतनी शिद्दत से ? "
रेशम ने मुस्कुराते हुये झट से सलोनी को अपनी बाँहों मॆं भरते हुये कहा " तुझे मेरी जान....और किसे पुकारूंगी भला ?
पूरे तीन साल हो जायेंगे इस कॉलेज मॆं हमें, तब से हम दोनों के अलावा और कोई आया क्या हमारी जिंदगी मॆं ? इस पढ़ाई के अलावा ?"
"हा...हा.हा.....तो...तो..तेरे कहने का मतलब तो ये हुआ कि कोई आ जाना चाहिये था, हमारी जिंदगी मॆं,क्यों ?"
सलोनी ने शरारत भरे अंदाज़ मॆं रेशम की तरफ़ देखते हुये कहा ।
अचानक से रेशम ने जोर से हँसते हुये कहा "हाँ यार....कोई तो होता..जो इस दिल मॆं बस जाता हमेशा के लिये.....जिससे पहले बातें-वातें होती,फ़िर रोज़-रोज़ मुलाकातें होती...और..और फ़िर मुहब्बत होती ।"
"आहा....जान मेरी तू ये शायरी कब से करने लगी...आँ....?"
शायरी ?और मैं...हा हा हा....(फ़िर थोड़ा उदास होते हुये )
सलोनी ! यार पढ़ाई कम्प्लीट होने के बाद घर जाना पड़ेगा और फ़िर वहाँ जाते ही घर वालों का तो मेरे हाथ धोकर हमारे पीछे पड़ जाना है ...और ऐसा होना स्वाभाविक भी है...क्योंकि यही तो होता है हमारे परिवारों मॆं लड़कियोँ के साथ कि पढ़ाई पूरी हुई नहीँ और बस...उसे पराया बनाने के सपने साकार करने के पीछे पड़ जाते हैं सब,जैसे यही एक लक्ष्य रह जाता हो उनके जीवन का ।
सलोनी....क्यों होता है हम मीडियम फैमिली की लड़कियों के साथ ऐसा ?
क्यों हमें और हमारे सपनो को मन चाही ज़मीन और आसमान नहीँ मिल पाते ?"
रेशम अब उदास हो गई थी और उसकी उदासी को देखकर सलोनी ने उसे कंधे से पकड़ते हुये कहा।
"ओह.....मेरी रेशू....आज़ तुझे हो क्या गया ?आँ.....?"
"कुछ नहीँ यार...चल जल्दी से, आज से कॉलेज के वार्षिक उत्सव की तैयारी शरू हो जानी है "।
रेशम ने अपनी उदासी छुपाते हुये जल्दी से सलोनी का हाथ पकड़कर कमरे से बाहर निकलते हुये कहा ।
दोनों सहेलियाँ हँसती-खिलखिलाती कॉलेज मॆं आ गई ।
पूरे कॉलेज मॆं सभी इन दोनों की दोस्ती की तारीफ करते नहीं थकते थे और दोनों रहती भी बिल्कुल सगी बहनों की जैसे ही ।
सलोनी बेफिक्र थी क्योंकि वो एक सम्पन्न परिवार की तो थी ही, साथ ही उसके परिवार मॆं किसी प्रकार की कोई बंदिश भी नहीँ थी और वो अपने जीवन के सभी फैसले लेने के लिये आजाद थी, फ़िर चाहे वो उसका करियर हो या उसकी शादी ही क्यों न हो, लेकिन वहीँ दूसरी तरफ़ रेशम पर परिवार का दबाव रहता था कि वो जल्दी से अपनी पढ़ाई पूरी करके घर आये तो उसकी शादी कर दी जायेगी ।
लेकिन रेशम बी.ए. कम्प्लीट करने के बाद बी.एड.और फ़िर जॉब करना चाहती है और उसके मम्मी-पापा ने उसे शादी से पहले जॉब करने को साफ मना कर कर दिया था ।
जैसे-जैसे कॉलेज के ख़त्म होने के दिन कम होते जा रहे थे...वैसे ही रेशम भीतर ही भीतर उदास होती जा रही थी ।
कॉलेज के वार्षिक उत्सव पर सलोनी को हमेशा की तरह डाँस कम्पीटीशन मॆं फर्स्ट प्राइज मिला था और रेशम उसने तो पहले से ही अपनी सुरीली आवाज़ का दीवाना ही बनाकर रखा था पूरे कॉलेज को.....आज़ भी जैसे ही वो स्टेज पर माइक के सामने आयी तो मानों सबके दिल की धड़कने थम कर रह गई हो....क्योंकि गोरा रंग और इकहरे बदन वाली रेशम आज़ हल्के आसमानी रंग के सूट मॆं और भी खूबसूरत जो लग रही थी, ऊपर से उसकी बड़ी-बड़ी आँखें और लम्बे घने, थोड़े सुनहरे और घुंघराले बाल, जो उसकी खूबसूरती मॆं और भी चार चाँद लगा रहे थे मानों ।
सचमुच रेशम थी ही इतनी खूबसूरत और उसकी मधुर और सुरीली आवाज़ ने तो उसे सबकी चहेती बनाकर रखा था इस कॉलेज मॆं ।
आज़ फ़िर उसने अपना पसंदीदा गीत "दिल है छोटा सा.....छोटी सी आशा " गाकर एक बार फ़िर से फर्स्ट प्राइज अपने नाम कर लिया और साथ ही सब का दिल भी जीत लिया था।
लेकिन रेशम इस बार खुश नहीँ थी और वो भीतर ही भीतर उदास होकर जाने क्या सोच रही थी कि तभी एक आवाज़ सुनकर लगा मानों वो नींद से जगी हो और उसने पलटकर देखा और एक अनचाही सी मुस्कुराहट चेहरे पर लाते हुये कहा " जी...जी...सॉरी सर.....जाने कहाँ खो गई थी..जी...सर...कहिये ?"
"अरे बई बहुत बहुत बधाई....रेशम! हर बार की तरह इस बार भी अपनी खूबसूरत और मधुर आवाज़ से तुमने सबका दिल जीत ही लिया....."
अनुराग सर ने उसे बधाई देते हुये कहा ।
"जी सर...आपका बहुत बहुत धन्यवाद " ।
सलोनी ने रेशम से जल्दी से अपने कमरे मॆं चलने के लिये कहा और फ़िर दोनों सहेलियाँ कमरे की तरफ़ जाने के लिये थोड़ी दूर चली ही थी कि अचानक से रेशम को चक्कर आ गये और वो वहीँ रास्ते मॆं ही बेहोश होकर गिर पड़ी... सलोनी उसे ऐसे गिरते देख जोर से चीख पड़ी...."रेशम......."?
उसकी चीखने की आवाज़ सुनते ही आस पास के लोग इक्कठे हो गये....तभी अनुराग सर भी सलोनी की आवाज सुनकर उसकी तरफ़ दौड़कर आये "अरे...! क्या हुआ रेशम को "? अनुराग सर ने सलोनी की तरफ़ देखकर उससे पूछा ।
सलोनी ने घबराते हुये कहा "पता नहीँ सर....बस! पिछले दो-तीन दिन से थोड़ा फीवर था तो इसने मेडिसन ले ली थी..लेकिन अब....."
सलोनी अपनी बात पूरी भी नहीँ कर पायी कि तभी अनुराग सर ने रेशम को उठाने की कोशिश करते हुये कहा "सलोनी चलो मेरे साथ तुम रेशम को थोड़ा सहारा दो हम इन्हें पास के ही एक हॉस्पिटल मॆं लेकर चलते हैं "
"जी....जी...सर " ।
रेशम को हॉस्पिटल मॆं एडमिट कराना पड़ा क्योंकि उसे बहुत तेज बुखार था और सलोनी भी घबरा गई थी,आखिर उनका और कोई रिश्तेदार या जान पहचान वाला भी नहीँ था इस शहर मॆं ।
तभी अनुराग सर रेशम की दवाई लेकर आये और सलोनी से कहने लगे.....
"सलोनी तुम ऐसा करो अपने रूम पर जाओ और थोड़ा आराम करो दिन भर की थकी होगी....और...."
"ले...लेकिन सर.....यहाँ " सलोनी ने अनुराग सर की बात को बीच मॆं ही काटते हुये कहा ।
"लेकिन-वेकिन कुछ नहीँ तुम जाओ और आराम करो यहाँ तो मैं हूँ ना रेशम के पास....बेफिक्र रहो....सुबह थोड़ा जल्दी आजाना बस ..."
अब सलोनी थकी हुई भी थी और अनुराग सर कोई अनजान तो थे नहीँ और वैसे भी वो बहुत अच्छे इंसान भी है...तो रेशम को रात मॆं कोई दवा वगैरह चाहिये होगी तो सर ध्यान तो रखेंगे वो अकेली जानती भी नहीँ ज्यादा किसी को...ये सोचकर सलोनी अपने रूम पर चली गई....और देर रात तक रेशम के बारे मॆं ही सोचती रही....कितना टेंशन लेती है ये....और ऊपर से इसके घर वाले इस इक्कीसवीं सदी मॆं भी न जाने कौन से ज़माने मॆं जी रहे हैं.....सोचते-सोचते सलोनी को कब नींद आ गई पता ही नहीँ चला और रेशम को रात भर होश नहीँ आया और अनुराग सर वहीँ उसी के पास बैठे रहे....सुबह होते ही उन्होने देखा कि रेशम का बुखार अब ठीक है थोड़ा और तभी सलोनी भी आ गई...उसने आते ही अनुराग सर की तरफ़ देखते हुये उनसे पूछा।
"सर ! अब कैसी है रेशम ?उसका बुखार कम हुआ कि नहीँ ?"
"हाँ अब थोड़ा रात से बेहतर है और तुम घबराओ मत ये जल्दी ही ठीक हो जायेगी...."।
"सर...बहुत-बहुत धन्यवाद आपका....क्योंकि अगर कल आप ना होते तो मैं कैसे.....क्या करती...."
"अरे ! ईश्वर किसी न किसी को तो भेजता ही है मदद के लिये, तो उसने मुझे भेज दिया और परेशान मत होओ...ये कुछ दवाइयाँ हैं जो बाहर मेडिकल स्टोर से लेनी है....मैं अभी लेकर आता हूँ तब तक तुम रेशम के पास ही बैठो "।
अनुराग सर जैसे ही दवा लेकर आये उन्होंने देखा कि रेशम को होश आ गया....और वो सलोनी से बात भी कर रही है, अनुराग सर ने दवाइयाँ सलोनी को देकर साथ ही उसे ये भी समझा दिया कि यें दवाइयाँ रेशम को कब और कैसे देनी है और साथ ही उसे रेशम का ध्यान भी रखने के लिये कहा और फ़िर रेशम की तरफ़ देखते हुये अनुराग से ने उससे पूछा "अब तबियत कैसी है रेशम ? "
"जी...सर अब थोड़ा ठीक हूँ.बस उठना चाहा तो थोड़े चक्कर और कमजोरी महसूस कर रही हूँ...."
"कमजोरी और चक्कर तो आयेंगे ही....तुम्हे वायरल इन्फेक्शन जो हुआ है....सलोनी ने बताया कि तुम्हे बुखार कई दिन से था....लेकिन तुमने डाक्टर को नहीँ दिखाया....ये तो गलत है न ?..."
रेशम की आँख मॆं आँसू भर आये लेकिन वो कुछ नहीँ बोली और मन ही मन सोचने लगी कि...
"ठीक ही तो कह रहे हैं सर....लापरवाही ठीक नहीँ....तभी तो महँगी पड़ गई....अब पता नहीँ कब तक "......
रेशम को सोच मॆं डूबा हुआ देखकर अनुराग सर ने उसे बड़े प्यार से समझाते हुये कहा ।
"अरे ! रोना नहीँ रेशम....तुम तो एक बहादुर लड़की हो,फ़िर इस बुखार से कैसे डर गई...."
अनुराग सर के साथ-साथ सलोनी भी हँसने लगी ।
रेशम की देखभाल के लिये सलोनी भी दो दिन से क्लास अटैंड नहीँ कर पायी थी,क्योंकि उसे भी छुट्टी लेनी पड़ी थी,रेशम बहुत कमजोर जो हो गई थी।
रेशम को दवा देकर सलोनी आज़ दो दिन बाद कॉलेज आयी थी....आते ही अनुराग सर ने उससे रेशम के बारे मॆं पूछा....
"अब रेशम की तबियत है....सॉरी सलोनी मैं पूछ भी नहीँ पाया और न ही कॉल तक कर पाया ?"
"जी..सर पहले से थोड़ा ठीक है...लेकिन कमजोर बहुत हो गई और आज़ वही जिद्द करने लगी कि कम से कम मैं तो क्लास अटैंड कर लूँ.....इसीलिए आज़ मै कॉलेज आ गई हूँ..."।
"ओह ! लेकिन तुम्हें अभी जब तक रेशम पूरी तरह से स्वस्थ न हो छुट्टी लेकर उसकी देखभाल करनी चाहिये सलोनी ? सर ने थोड़ा चिंतित और समझाते हुये कहा ।
"आप ठीक कह रहे हैं सर...लेकिन रेशम कुछ ज्यादा ही टेंशन ले रही है पढ़ाई की....." ।
"अच्छा तुम अपनी क्लास रूम मॆं जाओ....मॆं बात करता हूँ उससे ।"
अनुराग सर ने रेशम के कमरे की डोर बैल कई बार बजाई लेकिन किसी ने दरवाजा ही नहीँ खोला...
उन्होने सोचा कि शायद रेशम सोई होगी...
वो वापस जाने के लिये मुडे ही थे कि दरवाजा खुलने की आहट सुनते उनके पैर वहीँ के वहीँ रुक गये ।
"सर आप ?...आइये न अंदर आइये..सॉरी सर सोने के कारण डोर बैल सुन नहीँ पायी...सॉरी....आपको वेट करना पड़ा..."
"अरे....सॉरी की कोई बात नहीँ,तुम ये बताओ तुम्हारी तबियत कैसी है ?
कमजोर भी बहुत हो गई हो...."
"जी सर....कमजोरी के कारण नींद आयी रहती है हर समय और एग्जाम सर पर हैं...."
"देखो तुम एग्जाम की टेंशन मत लो...मैं सलोनी के हाथों नोट्स तैयार करके भिजवा देता हूँ....तुम आराम से तैयारी कर लेना "।
"जी धन्यवाद सर.....सर मैं आपका अहसान कभी नहीँ भुलूँगी....आपने रात भर जागकर अस्पताल मॆं मेरी देखभाल की....और अब पढ़ाई...." कहते-कहते रेशम की आवाज़ भर्रा गई और उसकी आँख से आँसू उसके खूबसूरत गालों पर लुढ़क आये....ये देखकर अनुराग सर ने अपने हाथों से रेशम के आँसू पोंछते हुये कहा ...."अरे....रोते नहीँ...इतनी छोटी सी बात और इतना बड़ा अहसान और आँखों से गिरते ये कीमती मोती....तुम्हारे चेहरे पर अच्छे नहीँ लगते...ओके " कहकर अनुराग सर खिलखिलाकर हंस दिये....."अच्छा रेशम अब तुम आराम करो और हाँ....नौ टेंशन....."
अनुराग सर चले गये लेकिन रेशम बहुत देर तक उन्हीं के बारे मॆं सोचती रही....सच मॆं कितने अच्छे हैं अनुराग सर....वरना कौन किसी की इतनी फिक्र और मदद करता है...कौन किसी के साथ यूँ रातभर जागकर हॉस्पिटल मॆं उसकी देखभाल करता है और वो भी तब जब कोई रिश्ता ही न हो दोनों के बीच....न खून का,न दोस्ती का और न ही दिल का......दिल का...मतलब दिल का रिश्ता तो जुड़ गया हम दोनों के बीच....सर की तरफ़ से भले ही न हो मगर....मगर..मैं तो दिल हार बैठी हूँ.....सोच ही रही थी कि तभी उसके मन ने उसे एक व्यंगात्मक आवाज़ मॆं हँसते हुये कहा...हा हा....रेशम सर से दिल का रिश्ता जोड़ने से पहले उसकी तो सोचो...जिसने तुम्हे और तुम्हारे पापा को कर्जदार बना रखा है और वो भी इस शर्त पर कि...बीए कम्प्लीट करते ही तुम्हारी शादी उसके साथ कर दी जाये.....हा हा हा....
नहीँ........ही..रेशम चीख पड़ी उसे लगा मानों वो आसमान मॆं उड़ रही हो और किसी ने उसके पंख ही कुतर दिये हो और वो औंधे मुँह धरती पर आ गिरी हो.....
मैं...मै ऐसा नहीँ होने दूँगी.....यू अपनी ज़िंदगी को किसी के हाथों की कठपुतली नहीँ बनने दूँगी...नहीँ..नहीं..."
रेशम की मेहनत का ही परिणाम था कि वो पूरे कॉलेज मॆं प्रथम आई थी और उसे आगे की पढाई के लिये स्कॉलरशिप भी मिल गई थी....लेकिन छुट्टियों मॆं घर भी जाना ज़रूरी था और घर जाकर वही हुआ जिसका कि उसे डर था.....
अगले हफ्ते ही उसकी सगाई गिरधारी लाल जी के बेटे के साथ तय कर दी गई थी....
रेशम घर आते ही उसकी मर्जी जाने या उससे पूछे बिना ही सब तैयारी देख और भी दुखी हो गई थी....अब उसे हर समय अनुराग सर की ही याद आ रही थी....काश ! वो उन्हें अपने बारे सब बता देती तो वो कुछ तो मदद करते उसकी ।
बस ! दो दिन बाद रेशम के सारे सपने गिरधारी लाल के आवारा बेटे के हाथों टूटकर चूर-चूर हो जायेंगे...अब वो करे भी तो क्या करे....सलोनी को तो उसने सब बता रखा था....मगर वो भी कुछ नहीँ कर पायी....काश ! कि वही सर को सब बता देती.....रेशम सोच ही रही थी कि तभी उसने देखा सलोनी और अनुराग सर उसके कमरे के दरवाजे पर खड़े हैं.....उसने झट से उठकर अपने आँसू पोंछते हुये सलोनी को गले से लगा लिया और फ़िर अनुराग सर की उपस्थिति का ध्यान आते ही.....वो झेंप सी गई...
" बैठिये सर...."सलोनी ने कमरे मॆं पड़े सोफे की तरफ़ इशारा करते हुये अनुराग सर को कहा ।
अनुराग सर ने कुछ नहीँ पूछा उससे क्योंकि उसकी रोने से लाल हुई आँखों और सलोनी ने सब बता दिया था....।
सलोनी रेशम और अनुराग सर को कमरे मॆं अकेला छोड़कर रसोई मॆं रेशम की माँ के पास चली गई ।
"रेशम ! ये लो " अनुराग ने रेशम के हाथ मॆं एक लिफाफा पकड़ाते हुये कहा ।
"ये...ये....क्या है सर ?"
"सर वर कुुछ नहीं मेरी बात ध्यान से सुुुनो रेेशम .....इसमें तीन लाख का चेक है.....ये तुम अपने पापा को दो और उनसे कहो कि वो ब्याज समेत गिरधारी लाल के पैसे आज़ ही लौटा दें..और तुम कल ही सलोनी के साथ शहर आजाओ क्योंकि मैंने बी.एड.की कोचिंग कल से ही शुरू कर दी है....और......" कहते-कहते अनुराग सर चुप हो गये ।
रेशम कुछ देर तक बोल ही नहीँ पायी बस उसकी आँखों से आँसू बहकर उसके खूबसूरत गोरे गोरे गालों को ओस की बूँद की तरह तरबतर कर रहे थे.....उसने झट से अनुराग सर के पाँव छू लिये.....अनुराग ने उसे अपने दोनों हाथों से पकड़कर उठाते हुए ।
"कुछ मत सोचो रेशम वरना बहुत देर हो जाएगी ।
ये रुपये लो और और अपने पापा से कहो कि वो कर्जमुक्त हों और तुम्हें भी तुम्हारा जीवन जीने का अधिकार दें।"
अनुराग सर का ये रूप देखकर रेशम की आँखें भर आयी और आज अनुराग सर कोई इंसान नहीं बल्कि भगवान नजर आ रहे थे।