यूँ कब तक चुप रहोगे ...
यूँ कब तक चुप रहोगे ...
शहरों की खामोशियों ने ......
मानवीयता का जीना .....
दूभर कर दिया......
हे निष्ठुर मनुष्य ......
अब इतनी भी चुप्पी ठीक नही .।
यूँ कब तक चुप रहोगे.....????
सरेआम आखिर कब तक,
लुटती रहेगी बेटी यूं,
कहने को तो देवी-रूपी,
फिर नजरें क्यों जिस्मों पर।
गली-गली-घर-घर-असुरक्षा,
छिपती-बचती-घबराती,
किस-किस-की-नजरों से बचे
करें भरोसा अब किस पर।।
दुनिया दिन में पीठ को ठोंके,
रात में चाहे सहलाना,
दिन के उजाले में शाबासी,
चाहे रात में बिस्तर पर।।
सरेआम फब्ती कसते ,
सरेआम द्विअर्थी बातें,
बलात्कार और जिस्म-फरोशी,
खबरे सजी अखबारो पर,
कब तक केवल जिस्म मानकर,
नोचेगे दानव चुन-चुन-कर।।
आखिर कब तक???
याद रखो ज़ुल्म देखना भी ज़ुल्म करने के बराबर है।
यूँ कब तक चुप रहोगे????
आज मंजर ये है कि एक स्त्री का शोषण करके उसे चुप कराने के एक मात्र विकल्प उसे रेप की धमकी देना है । न केवल सामान्य युवा बल्कि बड़े बड़े राजनेता भी ऐसे घृणित कार्य करते नजर आते हैं। क्या इसी से स्त्री विमर्श हो सकता है???????
यूँ कब तक चुप रहोगे????
महिलाओं को पुरुषों ने एक वस्तु के समान ही समझा है। जब तक मन किया साथ रहें और फिर इक दिन उसे इक गंदे कपड़े की तरह फेंक दिया ।
इक स्त्री का शोषण हर रोज होता है कभी उसकी भावनाओं, प्रेम विश्वास के साथ खिलवाड़ तो कभी रंग रूप काद काठी को लेकर ऐसा इक बार नहीं बार बार होता हैं ।
ऐसा क्यों ???
इसलिए कि वह प्रेम करती है । इसलिए कि वह प्रेम में अपना सबकुछ समर्पण कर देती है। स्त्री प्रेमस्वरूपा है इस कारण पुरूष उसके साथ छल करता है । इस पुरूष प्रधान देश में वह अपनी सत्ता चलना चाहता है ।
पर .......
याद रहे कि
हर स्त्री में अष्टभुजा वाली नवदुर्गा समाहित है। स्त्री तुम अबला नहीं हो अपनी शक्ति को जागृत करो । समाज में फैली दानवी प्रवृत्तियों का दमन करो । खुद को शक्ति संपन्न बनाओ । जो बुरी दृष्टि डालें उसकी आंखें फोड़ दो । स्त्री तुम कमजोर नहीं हो।
इस नव दुर्गा में स्त्री की सोयी हुई शक्ति को पुनः स्मरण कराते हुए स्त्री एकजुटता का आवाहन करती हूँ जिससे किसी भी अंकिता को अपनी जान ना गवांनी पड़े ।