आसमान के रंग
आसमान के रंग
निलेश, हाँ शायद यही नाम था, माली बाबा का बेटा।
अपने पिता के साथ हमारे बगीचे में आता। पिता का हाथ अपने छोटे छोटे हाथों से बँटाता।
"का बाबू गुलाब छटी, कटर दे तोहका"
"काँटे हम झाड़ देब, बाबू पानी डार दे का।"
मैं पढ़ने का बहाना ले अपनी कापी किताब के साथ बगीचे में आ बैठता। पता नहीं क्यो वो मुझे बहुत प्यारा लगता। हम दोनों के बीच दस साल का अंतर था। मैं कक्षा बारह का विद्यार्थी और उसने स्कूल ही नहीं देखा था।
मै देखता टूटे पत्तों से वो जमीन पर चित्र बनाता। कभी टहनी से मिट्टी में लकीरें खींच आकृति बनाता। मैं भी माँ की नज़र बचा चुपके से उसे चॉकलेट, मिठाई देता पर वह अपने पिता से पूछकर लेता।
"बाबू,भईय्या चाकलेट देत है, लै ले।"
माली कहता- "भईय्या जी माँ जी से पूछ लिये न।"
मैं हाँ मे सिर हिला देता। जानता हूँ माँ किसी को कुछ देने के लिये मना नहीं करती है।
निलेश जब पत्तों से चित्र बनाता तो मैं उसकी बहुत तारीफ करता। वो कहता- "भईय्या मेरा मन करता मैं आकाश मे रंग भरूँ, नीला, लाल पीला सब रंगों से रंग दूँ, क्या ऐसा हो सकता है।" क्यों नहीं मेहनत और लगन से आदमी जो चाहे कर सकता है।" मैं बुजुर्गो की तरह बोलता। निलेश की मोटी आँखों में सपने तैरते दिखते।
मेरी परीक्षा खत्म हो चुकी थी। छुट्टियाँ थी, वर्णमाला की किताब लाकर मै उसे अक्षर ज्ञान देने लगा। जल्दी ही उसने हिंदी अन्ग्रेजी की वर्णमाला सीख ली। मेरा रिजल्ट आ गया। मैं आय.आय.टी.कोचिंग के लिये कोटा जाने की तैयारी करने लगा। जाने से पहले मैंने पापा से कहा- "पापा मैं आपके सपनों को पूरा करूंगा,आप भी मेरा एक सपना पूरा करे। निलेश को स्कूल में दाखिल करे और उसकी पढ़ाई का खर्च भी आप करे।" पापा ने मुझे वचन दिया।
मैंने पापा के सपनों को पूरा किया। विदेश की एक बड़ी कंपनी मे प्रतिष्ठित पद पर कार्यरत हुआ और पापा ने अपना वचन निभाया। समय समय पर निलेश की खबर मुझे मिलती।पापा ने बताया वो कुशाग्र बुद्धि बच्चा है। पापा निलेश की पढाई और उन्नति को देख प्रसन्न थे। पापा से ही समाचार मिला निलेश को फ़ाइन आर्ट्स कॉलेज मे दाखिला मिल गया है।उसे अब छात्रवृति भी मिलने लगी है। सुनकर मन को सुकून मिला।
माँ और पापा के नहीं रहने के बाद कभी कभी निलेश खुद अपने समाचार फोन से दे दिया करता था। धीरे धीरे उसके फोन आने बंद हो गए। मैं भी अपने काम और परिवार में व्यस्त हो गया। निलेश बिसरी हुई याद बनकर रह गया।
लम्बे अंतराल के बाद कंपनी के काम से बंगलोर आना हुआ। होटल में रुका हुआ था। सुबह अखबार देखा अखबार के सिटी न्यूज़ पेज पर बड़े अक्षरो मे खबर थी "आर्ट गेलेरी में प्रसिद्ध चित्रकार निलेश माली के चित्रों की भव्य प्रदर्शनी।"
अचानक मुझे अपना बिसरा हुआ निलेश मिल गया, जिसने आसमान को रंगों से भर दिया।