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Manju Saini

Inspirational

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Manju Saini

Inspirational

शीर्षक:वो बसंत की याद

शीर्षक:वो बसंत की याद

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उस दिन हमारे प्रेम में मानो ... 

ओस की ताजा ताजा हल्की भीगी

बरसात थी वह बसंत की

रोपा था हमने यहीँ बस यूँ ही

वह सरसों का पीला सा पुष्प यहीं…

प्रेम के ताजा जल समान..!


तुम कुछ कहने वाले थे शायद …

तुम्हे लगा

मैं ठहरना चाहती हूँ यहीं 

तुम में ही कहीं..

पीत-सुंगधित-सरसों की लहलहाती सी यादो में..

यह मेरी हाथों की मिट्टी ऐसी...

क्या तुम्हें पता है, तुम मुझमे मेरे जैसे ..!


तुम्हारा स्पर्श पाने को ही जैसे मैं

बिछ- बिछ जाऊँगी ताजा ओस की बूंद सी

है मिलन की हर सुबह ख़ूबदुरत सी

मैं तुमसे मिलने आऊँगी ओस की ताजा बून्द बन

मैं पीली सरसों बन खिलूँगी उस पर गिर कर

तब महकने लगूंगी तुम्हारे शीतल प्रेम में...


तुम में ही कहीं तुम बनकर..

तुम्हारे दिल रूपी आंगन में मैं

मैं ही यूँ बस जाने की इच्छा लिए,

आज फिर यादे ताजा हुई लगा आज

फ़िर कहीं तुममें ही यूँ सिमट जाऊँगी..!

मानों बसंत में सरसों फुट कर सुगंध दे रही हो।


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