प्यार क्यों किया
प्यार क्यों किया
इज़हार ही करना था तो दरकिनार क्यों किया ?
आंसुओं का समंदर, यूं ही पार क्यों किया ?
उम्मीद ही क्यों लगाई इस, ख्वाबों के शहजादे को,
गलतफ़हमी आई थी, तो फिर शिकार क्यों किया ?
धड़कनों को यकीन था, फ़रेब पर तेरे,
हम आवारा ही थे, तो फ़नकार क्यों किया ?
नशा मुझको भी था तेरी अदाओं का यकीनन,
बेवफ़ा गर थी तू, तो फिर वफ़ा का करार क्यों किया ?
प्यार की राहों में, फिज़ाओं की बहार छोड़ कर,
इस अकेले राही को, मंजिल का वफ़ादार क्यों किया ?
रोम-रोम तक पिघलता रहता है मोम की तरह,
दिल के रोशनदान से फिर, इश्क-ए-तीर पार क्यों किया ?
निगाहों में तेरे गजब का नशा था जानेमन,
बेख़बर आशिक के दिल पर,
नयन कटारी से वार क्यों किया ?
नेकियों से भरी रूह पाई थी हमने, हमनशी,
देकर सेहत चंगी, वफ़ा का बीमार क्यों किया ?
संभाल कर रखी है, तेरे गुलशन की खुशबू मेरे मन में,
तेरे ना होने का दुख होता है जीवन में,
रवैए ने बदल दिया, जिंदगी जीने का मतलब ही मेरा,
सीखाकर हुनर इंसानों को पहचानने का,
हमें गवार क्यों किया ?
लगी थीं आग गर सीने में तेरे, तूफ़ानों की तरह,
आकर आगोश में मेरे, जिस्म में दरार क्यों किया ?
मिट गया वजूद तेरा भी और मेरा भी,
गर पता ही था तुझे अंजाम, तो फिर प्यार क्यों किया ?