Sanjay Pathade Shesh
Drama
लड़का
लड़की के
पीछे-पीछे जा रहा है,
और पीछे
पीछे, पीछे जा रहा.....
रेवड़ी
जनप्रतिनिधि
अजब दौर है
आदत
श्रद्धा बनाम ...
मोहरा
मोहरे
विश्वास
आश्वासन
हाइकू रचनायें
हजार उलझनों को छोड़ किसी छोर को थाम लेते हैं। हजार उलझनों को छोड़ किसी छोर को थाम लेते हैं।
हम तो राहों से भटके मुसाफिर यारो सितारे बुलंद कभी थे ही ना हमारे सच्चाई की राहों पर थके हारे... हम तो राहों से भटके मुसाफिर यारो सितारे बुलंद कभी थे ही ना हमारे सच्चाई ...
दर्द मुझे भी होता था, पर मैं सम्भल जाता, मुझसे शादी करती, सब सपने पूरा करवाता... ! दर्द मुझे भी होता था, पर मैं सम्भल जाता, मुझसे शादी करती, सब सपन...
वो ही उसकी अर्धांगिनी और आदर्श स्त्री कहलाती है। वो ही उसकी अर्धांगिनी और आदर्श स्त्री कहलाती है।
छोड़ आऊँ चांद सितारा सिंदूर पहनो मेरे नाम को। छोड़ आऊँ चांद सितारा सिंदूर पहनो मेरे नाम को।
मासी नहीं माँ थी वो, मेरे दिल की धड़कन थी, जो मेरे दिल में रहती है। मासी नहीं माँ थी वो, मेरे दिल की धड़कन थी, जो मेरे दिल में रहती है।
ना कोई गम ना कोई हमदम बस हम और बरसात का संग। ना कोई गम ना कोई हमदम बस हम और बरसात का संग।
सचमुच हम कहीं और भटक जाएंगे। सचमुच हम कहीं और भटक जाएंगे।
जिससे चमक रहा है ये दिल और क़ैद है नफ़्स की वो हरकतें जो मचलती थी कल तक तुम्हे देखकर। जिससे चमक रहा है ये दिल और क़ैद है नफ़्स की वो हरकतें जो मचलती थी कल तक त...
मेरे शरीर के हर बाल पर, पापों का एक झाड़ लगा है। मेरे शरीर के हर बाल पर, पापों का एक झाड़ लगा है।
जब मुसाफ़िर हुई तीरगी दिल के दीपक जलाने लगे ! जब मुसाफ़िर हुई तीरगी दिल के दीपक जलाने लगे !
जहां थी मेरी हर पल की वो खुशी क्यों अब दर दर सी अब भटक रही। जहां थी मेरी हर पल की वो खुशी क्यों अब दर दर सी अब भटक रही।
ओढ़नी उड़ावेलु त पवन पुरवईया झंकोर मारे। ओढ़नी उड़ावेलु त पवन पुरवईया झंकोर मारे।
आज खुद से दूर हो जाने का जी चाहता है। आज खुद से दूर हो जाने का जी चाहता है।
काश इसकी, आदत से पहले, इसकी कोई, दवा मिल जाए। काश इसकी, आदत से पहले, इसकी कोई, दवा मिल जाए।
आई नई पीढ़ी, हुआ वही संग्राम, हमें क्या मिला ? दो कमरों का मकान। आई नई पीढ़ी, हुआ वही संग्राम, हमें क्या मिला ? दो कमरों का मकान।
हमारी मनमानी को लोग अय्याशी समझ बैठें, हमारी सच्चाई को लोग परछाई समझ बैठें, बस अब औऱ... हमारी मनमानी को लोग अय्याशी समझ बैठें, हमारी सच्चाई को लोग परछाई समझ...
बहुत हो लिए आबाद अब बर्बाद होना है ! बहुत हो लिए आबाद अब बर्बाद होना है !
ज़िंदगी में कुछ ऐसे रमने लगे हैं कुछ हम उनमें कुछ वो हममें रहने लगे हैं ज़िंदगी में कुछ ऐसे रमने लगे हैं कुछ हम उनमें कुछ वो हममें रहने लगे हैं
दिसंबर में मन को नहाना न भाता, वो ठंडी वो दादी का खांसी से नाता, वो सर्द हवाओं से जैकेट बचाता। दिसंबर में मन को नहाना न भाता, वो ठंडी वो दादी का खांसी से नाता, वो सर्द ह...