दूरी
दूरी
थका रही है ये दुनिया मुझे,
रोज़ कुछ नया कुछ पुराने से जुड़ जाता है।
इस ज़िन्दगी का खेल जितना समझ रही हूं,
उतना ही दूर जाने को जी चाहता है।
अब दिल टूटता है तो आवाज़ नहीं आती,
नई पुरानी शक्लें अब रास नहीं आती।
इन बड़े शहरों में अब सांस नहीं आती
इस भीड़ में खुदको भुलाने का जी चाहता है,
आज खुद से दूर हो जाने का जी चाहता है।