Sanjay Pathade Shesh
Tragedy
सत्ता में
जितने फूल
उतने ही कांटे हैं
कारण -
उन्होंने केवल
अपनों को ही
मंत्री पद बांटें हैं।
रेवड़ी
जनप्रतिनिधि
अजब दौर है
आदत
श्रद्धा बनाम ...
मोहरा
मोहरे
विश्वास
आश्वासन
हाइकू रचनायें
शहर की आब-ओ-हवा है ठीक नही तुम अभी आना नही। शहर की आब-ओ-हवा है ठीक नही तुम अभी आना नही।
हर प्राणी बेचैन है, धरती हुई अधीर। इंद्रदेव कर के कृपा, बरसा दो कुछ नीर।। हर प्राणी बेचैन है, धरती हुई अधीर। इंद्रदेव कर के कृपा, बरसा दो कुछ नीर।।
यही फलन है जब नवपीढ़ी आँसू से सन जाती है सहिष्णुता जब हद से बढ़ती कायरता बन जाती है ... यही फलन है जब नवपीढ़ी आँसू से सन जाती है सहिष्णुता जब हद से बढ़ती कायरता बन जाती ह...
आज जब सदियों की खोज के बाद उसने ढूंढ़ लिया है 'ना ' शब्द। आज जब सदियों की खोज के बाद उसने ढूंढ़ लिया है 'ना ' शब्द।
कुछ टूट रहा था, कुछ छूट रहा था, लेखन से नाता टूट रहा था। कुछ टूट रहा था, कुछ छूट रहा था, लेखन से नाता टूट रहा था।
आज फिर एक माँ, आस के दीप जलाये गुमनाम हो गई। आज फिर एक माँ, आस के दीप जलाये गुमनाम हो गई।
पंक्तियों की प्रेरणा बेच दी जब जाती है, वह रमणी कोठे पर रात भर वीर्य से नहाती है। पंक्तियों की प्रेरणा बेच दी जब जाती है, वह रमणी कोठे पर रात भर वीर्य से नहात...
ना करो तुम हमको ऐसे रुखसत यूँ अपनी इन भीगी पलकों से। देखना फिर नया ख्वाब बनकर आएंगे एक ना करो तुम हमको ऐसे रुखसत यूँ अपनी इन भीगी पलकों से। देखना फिर नया ख्वाब बनकर...
सात दिनों के सात रंग में रंगी हुई इसकी प्रेम कहानी है। सात दिनों के सात रंग में रंगी हुई इसकी प्रेम कहानी है।
धिक्कारेगा तुम्हें ये कड़वा सच जिसे कहने से तुम डरते हो। धिक्कारेगा तुम्हें ये कड़वा सच जिसे कहने से तुम डरते हो।
अब स्वतंत्र है वो तो पराश्रित मैं भी नहीं इस अर्थहीन पानी का अर्थ कुछ भी नहीं। अब स्वतंत्र है वो तो पराश्रित मैं भी नहीं इस अर्थहीन पानी का अर्थ कुछ भी नहीं...
दूर कहीं दिख रहा था एक अस्थि पिंजर, जिस पर रह गया था बस मॉंस चिपक कर। दूर कहीं दिख रहा था एक अस्थि पिंजर, जिस पर रह गया था बस मॉंस चिपक कर।
प्रकृति करीब जाओ जितने अपनी ओर खींचने को आतुर। प्रकृति करीब जाओ जितने अपनी ओर खींचने को आतुर।
कहाँ बने उनके लिए कभी कोई अलग से 'कृपा भवन।' कहाँ बने उनके लिए कभी कोई अलग से 'कृपा भवन।'
तुम बस अपनी सोचो यहां। खुदा किसी का भी ना मोहताज है तुम बस अपनी सोचो यहां। खुदा किसी का भी ना मोहताज है
मेरे हिंदू मुस्लिम बच्चों को आपस में लड़ाया जाता है मेरे हिंदू मुस्लिम बच्चों को आपस में लड़ाया जाता है
खेतों से गांवों से कस्बों से शहरों से जैसे बसंत गायब खेतों से गांवों से कस्बों से शहरों से जैसे बसंत गायब
कौन जाने किस किस कोख़ से, जन्म कुपुत्र का होता है। कौन जाने किस किस कोख़ से, जन्म कुपुत्र का होता है।
एक वक़्त था यारों जो लगे थे कतारों में। आज मिलने के लिए वह वक़्त दे रहे हैं एक वक़्त था यारों जो लगे थे कतारों में। आज मिलने के लिए वह वक़्त दे रहे हैं
आखिर क्यों लाखों परिवार न्याय से वंचित रह जाते है। आखिर क्यों लाखों परिवार न्याय से वंचित रह जाते है।