बचपन की शैतानियाँ
बचपन की शैतानियाँ
बहुत सताया है बचपन में माँ को
पीछे पीछे अपने दौड़ाया है माँ को
बार बार कर के मस्तिया माँ को किया परेशान
खेलते खेलते गिर जाते थे चोट कई बार लग जाती थी
लेकर उसको दौड़ना पड़ता था दवा दिलाने
आंसू उसकी आँखों मे आ जाते थे
अपनी गलती की वजह से हस्पताल में कई दिन रहना पड़ा
माँ की भी हालत बुरी हो गयी थी मेरी सेवा करते करते
पढ़ाई करने में भी जिद की कई बार की
एक रोज पिटाई भी हुई माँ से लेकिन उसके बाद हम ऐसे सुधरे
की फिर कभी नही किया माँ को परेशान
हर एक बच्चे की होती है ऐसी ही कहानिया
माँ को तंग करने के किस्से निराले
जैसे जैसे हम बड़े होते गए
शैतानियां हमारी भी खत्म होती गयी
नादान थे हम जब हम बच्चे थे
जिद्दी बहुत थे हम और है आज भी जिद्दी
वक्त के साथ हम भी समझदार हो गए
बचपन तो नही लौट के आने वाला
शैतानियां खत्म हो गयी हो चाहे
पर आज भी जिंदा है मेरा बचपन मेरे
दिल के किसी खोने में
आज भी थोड़ी सी शैतानियां कर लेते है
अपने दोस्तो से मिलकर
कौन कहता है बचपन लौट के नही आता
जब हम बुड्ढे ओ जाएंगे फिर बचपन सी हरकते करेंगे