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Devendraa Kumar mishra

Abstract

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Devendraa Kumar mishra

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रंगारंग हो रहे

रंगारंग हो रहे

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रंग से सराबोर रंगारंग हो रहे 

भंग की तरंग में मस्त अंग अंग हो रहे 

सखी, सखा, सभी ज़न 

संग संग हो रहे. 

खेत, खलिहान में, मोहल्ले, गलियान में 

सब बनाकर टोली 

खेल रहे होली।


चेहरे गुलाल हो रहे 

दूर दिल के मलाल हो रहे 

चारों ओर हुड़दंग हो रहे 

रंग से सराबोर रंगारंग हो रहे 

अंग भीगे रंग से 

मन भरे उमंग से।


दिख रहे हैं सभी आज 

उड़ती पतंग से 

नेक एक ख्याल हो रहे 

चेहरे लाल लाल हो रहे 

एक लय एक तार मिलके यार 

चारों ओर प्रेम प्रसंग हो रहे 

रंगारंग हो रहे।


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