STORYMIRROR

Alok MS

Abstract

4  

Alok MS

Abstract

वक़्त और वे यादें

वक़्त और वे यादें

1 min
323

अपनो को तलाशती उन मासूम आंखों में,

निसहाय वक्त में भी, ख्वाब जो है,

उन सपनों को परिणित करने को,


बेचैन मेरे हालात है अभी,

अपनो के इंतज़ार में वे बेगाने जो,

दिन-रात स्नेह को तरसते है,

उनको समझने वाली वह बातूनी आंखे अब,


धरा पर जीवंत नही पर निष्प्राण नहीं,

माना वह बसंती शाम सी मुस्कान अब,

बस वक्त की एक परक्षाई है,

पर मुझमें वास करते उसके सपने,

वक्त के तो मोहताज़ नहीं.......


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract