वक़्त और वे यादें
वक़्त और वे यादें


अपनो को तलाशती उन मासूम आंखों में,
निसहाय वक्त में भी, ख्वाब जो है,
उन सपनों को परिणित करने को,
बेचैन मेरे हालात है अभी,
अपनो के इंतज़ार में वे बेगाने जो,
दिन-रात स्नेह को तरसते है,
उनको समझने वाली वह बातूनी आंखे अब,
धरा पर जीवंत नही पर निष्प्राण नहीं,
माना वह बसंती शाम सी मुस्कान अब,
बस वक्त की एक परक्षाई है,
पर मुझमें वास करते उसके सपने,
वक्त के तो मोहताज़ नहीं.......