बचपन से पचपन
बचपन से पचपन
पचपन की उम्र में,
सोलह का मन रखता हूँ।
कई बार लोगों के उपहास का भी
कारण बनता हूँ।
बड़े ठोस किस्म का व्यक्ति हूँ मैं,
दिल पर नहीं लेता किसी की बात।
हंस लेता हूँ मैं भी थोड़ा
लोगों के साथ।
जानते हैं उम्र तो शरीर की होती है।
मन तो चिर युवा रहता है।
सोलह में किया था जितना प्रेम तुमसे
आज पचपन में भी उतना ही करता हूँ।
उम्र शरीर की होती है जनाब,
मन कहाँ सोलह और पचपन के फेर में पड़ता है।