वो औरत, जिसे कहते हैं माँ....
वो औरत, जिसे कहते हैं माँ....
अक्सर रो पड़ती हूँँ मैं, अब माँ के हाल पर
देखकर झुर्रियाँँ खूबसूरत जननी के हाथों और गाल पर।
जो हुआ करती थी कभी बला की सक्षम
अब अपने नित्य कर्म करने को भी है अक्षम।
सहम सी जाती है वो अब एक हल्की सी आवाज़ पर
अक्सर रो पड़ती हूँ मैं, जब देखती हूँ उसे दयनीय हाल पर।
एक कोना है अब उसका आशियाना
कहाँ गई वो औरत जिसने बनाया था हम सब का ये खूबसूरत ठिकाना।
सजने संवरने की शौकीन वो औरत कहाँँ अदृश्य हो गई
अब तो उसके सारे शौक की पोटली मैक्सी तक सिमट गई।
एक जगह नहीं रुक पाती थी जो पलभर
एक ही खटिया पर गुजारती है वो अब अपनी सुबह, शाम और दोपहर।
दुत्कार दी जाती है अब वो अपनी छोटी -मोटी गलतियों पर
जो बचाया करती थी हमें कैसी भी गलती होने पर।
बहुत दुख होता है देखकर अपनी सुपर वुमन को इस हाल पर।।