बेढ़ियाँ और प्रारब्ध
बेढ़ियाँ और प्रारब्ध
कितनी भी बेढ़ियाँ लगा दो मेरे पैरों पर
जो प्रारब्ध में हैं वह मुझे मिलकर रहेगा,
मेरे प्रारब्ध पर नहीं है किसी का कब्जा
मैं अपने निश्चय से पा लूँगी अपना हिस्सा।
ऊपर वाले ने मुझे दो हाथ, दो पैर
और दी है एक दिव्य इंद्री
मैं जननी हूँ
जन्म देने की है मुझ में क्षमता
मैं, पत्थर को इंसान बनाती
खुद भी अहिल्या बन जाती।
न सोचो कि तुम हो मेरे भाग्य वेत्ता
ईश्वर तो सबको ,सब कुछ बराबर देता
आज जो रुप तुमने है पाया
वह भी है मेरा हम साया।
जब तुम कुछ नहीं कर सकते निर्मित
क्यों करते हो फिर बिगाड़ने की जिद
तुम रखो अपना हिस्सा अपने पास
नहीं है मुझे किसी से कोई भी आस।
जो प्रदत्त है वहीं मेरा
जो चाहती मैं, वो होगा मेरा।
मुझे अपने प्रारब्ध को है आता सँवारना
हम बेटियों को बेढ़ियों के बाद भी आता है
आगे बढ़ना! नित आगे बढ़ना!!