ख़ामोशी
ख़ामोशी
ख़ामोशी की भाषा अगर तू समझले तो
इससे अच्छी कोई भाषा नहीं।
और लफ्जों मे बयाँ कर दूँ
मैं ऐसी तुझे आस कहाँ ?
चल चलते जाते है ना
भले रास्ता लम्बा ही क्यों नहीं।
ख़ामोशी से जीत जाते हैं,
अगर तेरे कोई अल्फ़ाज़ नहीं।
चल ठहर जाते हैं थोड़ा,
बेमतल के शब्दों को भूल जाते हैं।
नया मोड़ ले जाते हैं और
अगर फिर भी ख़ामोशी ना टूटी
चल सीख ही लेते है ना
ख़ामोशी से बात करना।
और अगर फिर भी दूरी
दरमियाँ लगी तो बिछड़ जायेंगे।
पर चल बिछड़ने से पहले
खामोशियां जीत लेते हैं
चल थोड़ा सा ख़ामोशी की
भाषा सीख जाते हैं।