कविता
कविता
आज एक बूँद नीर भी बहाना नहीं
आँसुओं को यूँ ही तुम गंवाना नहीं
काम आयेंगे जल की तरह वो भी
हिचकी बंध जाये नहीं रोना तो भी
जल के अम्बार यूँ तो समेटे है नदी
पीने की बूँदों की है मगर जग में कमी
तरस जायेगी आने वाली अपनी सदी
बचेगा न नल न बचेगी कोई नदी
व्याकुल होंगे पक्षी न मिलेगी हरियाली
गायब हो जायेगी इस जहाँ की लाली
सोना है मिट्टी ...मिट्टी है सोना
अनमोल जल है ...न जल को खोना