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Nalin Wadhwa

Drama Inspirational

4.5  

Nalin Wadhwa

Drama Inspirational

राम कथा

राम कथा

7 mins
19.6K




राम रमापति जय जय जय,

वन वन भटके वह,

मर्यादा की सीख सिखाने,

त्याग भावना हमें सिखाने ,

यहीं पे पूरे करने काम,

आए मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम।


अयोध्या में आए श्री राम,

नहीं वहां पर अब कोई वाम,

सब वहां हर्षित हैं इस पल,

दशरथ के मन में है हलचल,

आए फिर भरत शत्रुघ्न भी,

लक्ष्मण ने भी आँखें खोली,

तीन रानियां सखियों जैसी,

साथ साथ ममता में डोली,

मानव का उत्थान है करना,

इसीलिए आए श्री राम ।


अयोध्या में उत्सव का शोर,

शंखनाद है चारों ओर,

शांताकारम राम के दर्शन,

करने आए सभी चहु और,

यह हो सकता है कि रावण,

भी आया हो दर्शन करने,

यह भी सच है सभी देवता,

सोच रहे अब कष्ट मिटेंगे,

यद्यपि यह मेरा विचार है,

कि रावण भी विष्णु भक्त था,

किंतु नहीं यह वर्णन कहीं भी,

कि रावण आया अयोध्या कभी भी,

सभी यहां सुख सागर में है,

आज यहां आए हैं राम।


यह है श्री राघव की माया,

कि यह कोई समझ न पाया,

एक मास का एक दिवस था,

हर कोई मोह में विवश था,

यहां रवि भी रुका हुआ है,

यहां कवि भी झुका हुआ है,

यहां सभी नतमस्तक होंगे,

यह है अयोध्या नगरी शुभ धाम,

यहां पे जग के पालक राम।


यदि यह हमने ना समझा,

यदि यह हमने ना जाना,

कि यह परम सत्य ही था,

की रमापति ही सियापति था,

प्रत्यक्ष को प्रमाण नहीं है ,

स्वयं सिखाएंगे श्री राम।


वहां चले अब जहां सरस्वती,

गुरु ने शास्त्रों की शिक्षा दी,

गुरु आश्रम में ऐसे रहते,

सेवा भाव से कार्य हैं करते,

आए जब राम गुरुकुल में ,

पुनः ज्ञान अर्जित करने ,

वहां सभी सुख में डूबे,

चारों भाई थे चार अजूबे,

यह प्रभु की ही अद्भुत लीला,

वेदों के ज्ञाता हैं राम।


गुरु आश्रम से आ साकेत,

विश्वामित्र का पा आदेश,

सबको करने अभय प्रदान,

लखन को ले चलें कृपानिधान,

चले ताड़का वन की ओर,

दुष्ट राक्षसी रहती जिस छोर,

बाण एक ताड़का को मारा,

मारीच सुबाहु को संघारा,

मारीच को दिया क्यों जीवनदान,

यह भेद जाने बस कृपा निधान,

चले हैं हरने मही की त्रास ,

इसीलिए आए श्रीराम।


चले वहां अब जहां महालक्ष्मी,

जनक सुता रमा कल्याणी,

वहीं होगा अब मिलन हरि से,

जहां जनक राज्य हैं करते,

चले संग मुनिवर लक्ष्मण के,

गंगा तट पर पूजन करके ,

वहीं एक निर्जीव आश्रम में,

तारा अहिल्या को चरण रज से ,

गंगा जिनकी उत्पत्ति है ,

वो हैं पतित पावन श्री राम।


समय ने ऐसा खेल रचाया,

समय ने ऐसा मेल बनाया,

वहीं पे पहुंचे कृपानिधान,

जहां पे थी खुद गुण की खान,

वही पहुंची अब जनक सुता,

उपवन में राघव को देखा ,

अद्भुत सौंदर्य और अतुल पराक्रम का,

है यह अति पुरातन रिश्ता,

तीनों लोकों में दोनों की,

कोई कर सकता ना समता,

गई मांगने उनसे रघुवर,

जिसने तप से शिव को जीता,

जनकपुरी में शुभ समय है आया,

जनक राज ने प्रण सुनाया,

सब का अभिनंदन करके,

सीता को सखियों संग बुलाया,

किंतु शिव के महा धनुष को,

कोई राजा हिला न पाया,

विश्वामित्र ने देखा अवसर,

तब उन्होंने राम को पठाया,

राम ने जाना शुभ समय है आया,

सभी बड़ों को शीश नवाया,

धनुष के दो टुकड़े कर डाले,

हमें मिले फिर सीताराम।


केकई ने षड्यंत्र रचाया,

नियति ने फिर खेल रचाया,

राजतिलक का समय जब आया,

माता का फिर मन भरमाया,

दशरथ से मांगे वर दो,

भरत को राज्य , वन राम को दो,

माता की आज्ञा सिर धरके,

पिता वचनों की गरिमा रखने,

साथ सिया और लक्ष्मण को ले,

चले गए फिर वन को राम।


वन में उनको मिले सभी ,

ऋषि तपस्वी और ज्ञानी,

वन में था ज्ञान अथाह,

वन में था आनंद समस्त,

वन में थे राक्षस कई ,

वन को कलुषित करते सभी ,

रावण के यह बंधु सभी,

करते थे दुष्कर्म कई ,

लिया राम ने फिर प्रण एक ,

निश्चर हीन धरा को यह,

रक्षा इस धरती की करने ,

आए दोनों लक्ष्मण राम।


वन में जा पहुंचा अभिमानी,

मारीच उसका मामा अति ज्ञानी ,

अभिमानी के हाथों उसकी,

मृत्यु हो जाती निष्फल ,

चुना मृत्यु का मार्ग सफल,

बन सुंदर एक मृग सुनहरी,

चला भरमाने मायापति राम।


सीता को पाकर अकेली,

चल दिया वह रावण पाखंडी

छद्मवेश साधू का धर के,

ले गया वह सीता को हर के,

यहां वहां सीता ने पुकारा,

हार गया जटायु बेचारा,

वन वन भटके दोनों भाई ,

पर सीता की सुध ना पाई,

यह सब तो है प्रभु का खेल,

दीन बने खुद दीनानाथ राम।


मिलना था अब हनुमान से,

बुद्धि ज्ञान और बलवान से,

वन में उनको भक्त मिला,

वानर एक अनूप मिला,

रुद्र अवतार राम के साथी,

वानर राज सुग्रीव के मंत्री,

वानर जाति का किया कल्याण,

सब के रक्षक हैं श्रीराम।


वानर राज ने किया संकल्प,

माता की खोज हो तुरंत ,

चारों दिशाओं में जाओ ,

सीता मां की सुध लाओ ,

चले पवनसुत दक्षिण की ओर,

मन में राम नाम की डोर,

विघ्न हरण करते हनुमान ,

उनके मन में हैं श्रीराम।


चले वहां अब जहां थी लंका,

वहां पर अद्भुत दृश्य यह देखा,

एक महल में शंख और तुलसी,

देख उठी यह मन में शंका,

वर्णन कर आने का कारण,

विभीषण से जाना सब भेदन,

सीता मां से चले फिर मिलने,

राम प्रभु के कष्ट मिटाने,

माता को दी मुद्रिका निशानी,

प्रभु की सुनाकर अमर कहानी,

यह तब जाना सीता माॅ ने,

रामदूत आया संकट हरने,

चले लांघ समुद्र महाकाय ,

सीता मां की सुध ले आए,

रावण की लंका नगरी को,

अग्नि को समर्पित कर आए,

रावण का अहंकार जलाकर,

बोले क्षमा करेंगे राम।


उत्साह और उमंग ले कर

हनुमत पहुंचे राम के पास,

सीता मां का हाल सुनाकर,

बोले ना टूटे मां की आस ,

दक्षिण तट पर पहुंच के बोले,

अब जाना है सागर पार,

राम नाम की महिमा गहरी,

वो करते हैं भव से पार,

राम नाम लिखकर जो पत्थर,

सागर में तर जाते हैं,

उसी राम के आगे देखो,

शिव भी शीश झुकाते हैं,

करके पूजा महादेव की,

लिंग पे जल चढ़ाते हैं,

राम भी उनकी सेवा करते,

जो रामेश्वरम कहलाते हैं,

सेतु बांध समुद्र के ऊपर,

लंका ध्वस्त करेंगे राम।


रावण एक महा अभिमानी,

विभीषण की एक न मानी,

मंदोदरी उसकी महारानी,

उसकी कोई बात न मानी,

सीता ने उसको समझाया,

क्यों मरने की तूने ठानी,

विभीषण को दे देश निकाला,

लंका का विनाश लिख डाला,

चले विभीषण राम के पास,

मिटाने कई जन्मों की त्रास,

लंकेश्वर कहकर पुकारा,

शरणागत के रक्षक राम।



शांताकारम राम ने सोचा,

युद्ध नहीं है प्रथम विकल्प

जो विनाश युद्ध से होता,

सृजन में लगते लाखों कल्प,

राम ने चाहा अंगद अब जाए,

रावण को यह कहकर आए,

माता को आदर् से लेकर,

राम प्रभु की शरण में जाए,

अंगद ने जा राजमहल में,

अपना शांति संदेश सुनाया

पर उस अभिमानी रावण की,

राज्य सभा को समझ ना आया,

तब राम नाम लेकर अंगद ने,

वहीं पर अपना पैर जमाया,

राम ने उस अभिमानी रावण को,

राम नाम का खेल दिखाया,

हिला ना पाए कोई उसको,

जिसके तन मन में हो राम।


अब निश्चित है युद्ध का होना,

रावण के अपनों का खोना,

युद्ध की इच्छा से जो आए

सब ने अपने प्राण गवाएं,

रावण अब इस बात को समझा,

कि संकट में प्राण फसाए,

युद्ध भूमि में किसको भेजें,

जाकर कुंभकरण को जगाएं,

राम लखन के सन्मुख भेजें,

वानर सेना को मरवायें,

कुंभकरण ना समझ सका की,

नारायण को कैसे हराऐं,

यह था कुंभकरण का भाग्य,

मुक्ति के दाता हैं श्री राम।


वानर सेना में उत्साह का शोर,

राक्षस सेना चिंतित सब ओर,

युद्ध हुआ हर दिन घनघोर,

पर बचा न कोई रावण की ओर,

एक से एक महा भट्ट आते,

आकर अपने प्राण गवाते,

मेघनाथ रावण की आस,

कई शक्तियां उसके पास

लक्ष्मण लक्ष्य लंका के सुत का,

गड़ शक्ति पराक्रम बल कौशल का,

यह क्या विधि ने खेल रचाया,

लक्ष्मण को युद्ध में हराया,

शक्ति मेघनाथ ने छोड़ी,

राम लखन की जोड़ी तोड़ी,

मेघनाथ के शंखनाद का कैसे उत्तर देंगे राम।


अब वानर सेना है भयभीत,

वानर दल की टूटी पीठ,

लक्ष्मण राम प्रभु की प्रीत,

लूट के ले गया इंद्रजीत,

वानर दल श्री राम को चाहे,

उनकी चिंता देखी न जाए,

अब उनको संजीवनी बचाए,

तब हनुमंत सामने आए,

वानर सब उनको समझाएं,

की सूर्य उदय से पहले ले आएं,

वरना लक्ष्मण को जीवित ना पाएं,

शांत समुद्र में जैसे तूफान,

ऐसे विचलित हैं श्री राम।


चले पवनसुत उत्तर की ओर,

लक्ष्मण के प्राणों की टूटे ना डोर,

संग ले राम नाम की आस,

हनुमत पहुंचे पर्वत के पास,

लक्ष्मण के प्राणों को लेकर,

हनुमत पहुंचे जहां थे राम।


यह तो है राम नाम की चाहत,

जो लक्ष्मण हो सके न आहत,

फिर गरज कर लक्ष्मण ने कहा,

तेरी मृत्यु अब निश्चित है अहा,

कहां है वह पाखंडी राक्षस,

युद्ध के सभी नियमों का भक्षक,

यहां पर तो रघुकुल का चिन्ह है,

जिसके आगे अब यह प्रश्न है

कि अब मेघनाद का मस्तक,

उसके धड़ से कब होता भिन्न है,

लक्ष्मण ने अब प्रण है ठाना,

विजयी हो कर आऊंगा राम।



युद्ध वहां है जहां है माता,

इंद्रजीत को समझ न आता,

की युद्ध वही जीत है पाता

जो सत्य का साथ है देता,

वहीं पे लक्ष्मण ने ललकारा,

युद्ध करने को उसे पुकारा,

सभी शास्त्र विफल कर डाले,

मेघनाद ने देखे तारे,

यह समझा रावण का सुत अब,

विष्णु आए मनु रूप धर कर

यह कैसे पितु को समझाए,

राक्षस जाति को कैसे बचाए,

सुबह का सूरज यह लेकर आया,

अब युद्ध करेंगे रावण राम।


वहां से शंखनाद यह बोला,

रावण का सिंहासन डोला,

यह अब अंतिम युद्ध है करना,

वानर सेना करें यह गणना,

यह है अब राम की इच्छा,

रावण को वानर दें शिक्षा,

युद्ध हुआ वह बहुत भयंकर,

देख रहे ब्रह्मा और शंकर,

यह अब युद्ध में निर्णय होगा,

की अंत में विजयी कौन बनेगा,

यहां पर सब हैं आस लगाए,

कि जल्दी सीता अब आए,

राम मारेंगे अब रावण को,

सीता मां के दर्शन हो सबको,

चलेंगे तीखे तीर रघुवर के,

काटने को शीश रावण के,

जों जों शीश दशानन के कटते,

वर के कारण वापस आ जाते,

तब रघुवर विस्मय में आए,

अब तो कोई उपाय बताए,

तब विभीषण सामने आए,

अमृत का रहस्य बतालाए,

अग्निबाण नाभि में मारो,

दशानन को ब्रह्मास्त्र से संघारो,

यही वो पल है जिसके कारण,

धरती पर आए श्री राम।


यह तो सब ने देखा उस क्षण,

कि रावण का हो रहा है मर्दन,

यह तो बस रघुवर में जाना,

कि रावण था बड़ा सयाना,

बिना राम के मुक्ति पाना,

असंभव था उसने यह जाना,

शुभम अथवा सत्यम का मिलना,

नहीं था संभव बिना सियाराम।


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