परिवर्तन
परिवर्तन
फूल ने कहा मूल से - तू तो बड़ी कुरूप है,
तब जड़ ने खुश होकर कहा - तू मेरा ही तो स्वरूप है
फूल का हृदय द्रवित हुआ जड़ को माँ कहने लगा
भाव में बह करके फूल ज़ोर से रोने लगा
आँसू के रूप में फूल पर ओस कण अब छा गए
फूल की यह दशा देख जीव सब पिघला गए
गर्मी, आँधी, गर्म हवा और तेज़ धूप पड़ी
फूल की डाली पतित हो पृथ्वी पर अब गिर पड़ी
फूल के रँग रूप सब गर्मी से झुलसा गए
सुंदरता पर किया गर्व, सब के सब पतिता गए
प्रकृति के इस नियम को न रोक सकते रंक भूप
कहत, "लिटिल कवि" ब्रजमोहन ये परिवर्तन के रूप...।