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Braj Mohan Sharma

Others

4.3  

Braj Mohan Sharma

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परिवर्तन

परिवर्तन

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नव - नव पेड़ उगे हैं अब तो श्रावण की बरसात में 

नवीन वृक्ष अब डूब गए फिर वसंत की याद में

गुलाब गेंदा गुड़हल के तरू मन ही मन में सोच रहे 

गुलमेंहदी को देखकर मन ही मन में मोह रहे।


फिर चंदा की चांदनी में शाखाएं चम चम चमक रहीं

उल्काएं आकाश में देख कर यह चमक रहीं।


जोर से छा रही हिम कुछ पौधे उस से ढक गए 

उनमें से कुछ मुरझाए उनमें से कुछ सूख गए,

जो पौधे मुरझाए थे 

साहस उठने का नहीं किया, 

पौधों ने की लापरवाही, साहस उठने का नहीं किया 

कुछ देर बाद आयी हवा ,उसने उनको गिरा दिया।


अब आया वसंत अब खुशियों की लगी झड़ी

बूंदों बूंदों के रूपों में शाखाओं पर ओस पड़ी,

पेड़ों की शाखाओं पर नई नई हरियाली आई

वसंत शोभा देखकर घर घर में खुशहाली छाई,

पेड़ों की शाखाओं पर नव नव सुंदर कली खिली

बूंदों बूंदों के रूप में शाखाओं पर ओस पड़ी,

फूलों पर भौरें मडराए वसंत शोभा देख कर

प्रकृति ने शोभा और बढ़ाई तितलियों को भेज कर,


यह देखकर फूल को गर्व हुआ 

इधर उधर देखने लगा 

कुरूप जड़ को देख कर दिल जड़ का वेदने लगा।


फूल ने कहा मूल से तू तो बड़ी कुरूप है 

तब जड़ ने खुश होकर कहा तू मेरा ही तो स्वरूप है,

फूल का ह्रदय द्रवित हुआ 

जड़ को मां कहने लगा

भाव में बह करके फूल जोर से रोने लगा,

आंसू के रूप में फूल पर ओस कण अब छा गए 

फूल की यह दशा देख जीव सब पिघला गए ,

गर्मी आंधी गर्म हवा और तेज़ धूप पड़ी 

पुष्प की डाली पतित हो प्रथ्वी पर अब गिर पड़ी,

पुष्प के रंग रूप सब गर्मी से झुलसा गए 

सुंदरता पर किया गर्व सबके सब पतिता गए,  

प्रकृति के इस कृत्य को ना रोक सकते रंक भूप

कहत" लिटिल कवि" " ब्रजमोहन "ये परिवर्तन के रूप।


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