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Bhavna Thaker

Romance

5.0  

Bhavna Thaker

Romance

रूह में बसा एक नाम

रूह में बसा एक नाम

1 min
347


कजरी ने आँखें झटक ली

जुगनू सी चमक थी

उस अंजान की आँखों में

कशिश तो हुई

दिल भी धड़का,


पर मोह के धागों को कसते

बलखाती कम्मर पे लपेटकर

साड़ी का पल्ला

समेट लिया,


वजूद को सम्मानित कर लिया

गर्दन उठाकर गर्वित सी

मोह को अंगारों में ढलकर

सुई की पीर सहते गुदवाया था जो

नाम एक,


हौले से उठाया

दिल की ज़मीन पर

बो दिया

महकी साँसों से सिंचकर..!


ना, नहीं भूली, कैसे भूलती

गहरी स्याही से उजले तन के

रोम-रोम पर फैला नाम

कितनी निशानी छोड़ गया वो ज़ालिम

सीने पर नीला छूटता ही नहीं..!


पलकें झुकाकर

हल्की नज़रों से देखकरमुस्काई

हज़ारों कलियाँ मोगरे की खिल गई

मदमस्त होंठों पर,


कैसे कोई दूजा नाम चढ़े

दिल की धड़कन पर

मटकती, सीने पर हाथ दबाती

वापस मुड़ी मोह के पंजों से छूटकर

सहज लिया वो नाम

रूह पर जो छप गया था।।


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