कोई बोला नहीं
कोई बोला नहीं
आवाज़ बहुत देर तलक थी लगाई पर क़ोई बोला नहीं,
कानों में किसी के भी मैंने शब्द मीठा कोई घोला नहीं।
एक परिंदा भी था पास बैठा उड़कर आया था कहीं से,
न जाने क्या सोंचता रहा पर मुँह उसने भी खोला नहीं।
नज़र जहाँ भी जाती आँखों में समन्दर का साया रहा,
पर कमाल की बात रही के वो एक पल भी डोला नहीं।
पत्थर भी पत्थर ही रहा जब तक उसपर बैठा रहा मैं,
मेरे हटने के बाद भी देखो किसी ने उसको तोला नहीं।