यह मेल नहीं कोई खेल प्रिये !
यह मेल नहीं कोई खेल प्रिये !
तुम झंझावातों पर वार करो,
लड़ लहरों से नदियाँ पार करो,
विषकंठ हो विष का पान करो,
अम्बर तक का संधान करो,
यह शमशीरों सा तेज प्रिये,
यह मेल नहीं कोई खेल प्रिये !
प्रेम, तूफानों का प्रचंड वेग,
ज्वालामुखियों का अमोघ उद्वेग,
हलचल सिंधु सी अपार अखण्ड,
सुनामी जैसी प्रतिघाती प्रचंड,
यह व्याकुलताओं का संवेग प्रिये,
यह मेल नहीं कोई खेल प्रिये !
सहस्रों सूरज न्यौछावर हैं,
वो सन्तों से यायावर हैं,
नहीं माँगते सम्पदा अपार,
रक्त की हर बूँद प्रिय पर वार,
कर देते शीश भी भेंट प्रिये,
यह मेल नहीं कोई खेल प्रिये !
मैं भँवरा तुम, अधखिली कली,
एक चुम्बन पर जीवन की बलि,
अंगारों पर चलकर देखा,
तुझ में खुद को खोकर देखा,
अब दिल में उठते उद्वेग प्रिये,
यह मेल नहीं कोई खेल प्रिये !