जीवन के पार...
जीवन के पार...
रहता है देह में
लेकिन जुड़ा होता है
एक तार अवचेतन का
देह से परे कहीं
भूल जाता है चेतन
अपने उद्गम को
स्मृति में किन्तु
संजोए रहती है
आत्मा हर जन्म के
हर देह को
देह से विदा लेते हुए
देखती है, पहचान लेती है
अपने वास्तविक स्वरूप को
हाथ थाम कर
देवदूत का
छोड़ जाती है
भौतिक देह, संसार को...