बलात्कार
बलात्कार
बलात्कार करके भी जीवित हब्शी दरिंदे हैं।
मर्यादा भी लज्जित जिनसे वो भारत माँ के बन्दे हैं।
मत तोड़ो अब और इन्हें मजबूत नहीं ये कंधे है।
बोले थोड़ा और सहो ना, हम आजाद परिंदे है।
एक अकेली देवी पर छह असुरों ने वार किया।
मोम चली थी करने रोशन उसने बस दीदार किया।
रॉड निकाले सीसे तोड़े पीड़ाओं के कैसे पार किया।
नोच लिया था बोटी-बोटी फिर भी न संघार किया।
दुल्हन कौन बनायेगा अब दुनिया में सब गंदे हैं।
मत तोड़ो अब और इन्हें मजबूत नहीं ये कंधे हैं।
बलात्कार करके भी जीवित हब्शी दरिंदे हैं।
संकल्प न्याय का रोता है, ज्वाला भीतर लेटी है।
ख्वाब बुने थे रानी के, अधरों बीच समेटी है।
मुक्त हुई जो भय से निर्भय निर्भया हमारी बेटी है।
बन्द करो ना बहुत हुआ अब भरी पाप की पेटी है।
नहीं मिलेगा इन्साफ दामिनी कानून युगों से अंधे हैं।
मत तोड़ो अब और इन्हें मजबूत नहीं ये कंधे हैं।
बलात्कार को करके भी जीवित हब्शी दरिंदे हैं।
बलात्कार करके बोले वो हम संविधान पे भारी है।
मौन रहो लक्ष्मी के खातिर लक्ष्मी से दुनिया हारी है।
हम जैसे लोगो ने ही तो बहन-बेटियाँ मारी है।
कर लोगे क्या आवाज उठाके कर्म हमारे जारी है।
लूट लो माँ-बहनों को, अपने कुत्तो के ये धंधे हैं।
मत तोड़ो अब और इन्हें मजबूत नहीं ये कंधे है।
बलात्कार को करके भी जीवित हब्शी दरिंदे है।
संविधान ने कहा हमेशा सब अधिकार बराबर है।
है फैलायी इसे किस ने, यह अफवाह सरासर है।
बीतेगी खुद पे तब न्याय करोगे, भरे बूँद से सागर है।
फूटेगी जब ले डूबेगी मजबूत नहीं अब गागर है।
कहा उन्होंने मर जाओ ना, मौजूद कहाँ नहीं फंदे हैं।
मत तोड़ो अब और इन्हें मजबूत नही ये कंधे हैं।
बलात्कार को करके भी जीवित हब्शी दरिंदे हैं।