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Vikas Sharma

Romance

1.0  

Vikas Sharma

Romance

तू मत समझना की मुझे तुझसे मोहब्बत है

तू मत समझना की मुझे तुझसे मोहब्बत है

3 mins
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ये जो शायर हैं, कवि हैं ये
मुझे क्या से क्या बनाते हैं,
बेसाख्ता मुझ पर इल्जाम सजाते हैं,
मेरे रोज़मर्रा के जीवन को,
खुद की गढ़ी बातों से,
तिल से राई बनाते हैं,

मेरे जहन में जो,
मेरे ख्यालों को,
अपनी खाली कल्पनाओं के ये पर लगाते हैं,
इन्हें खुद ही नहीं मालूम
हर दिन, नई पहचान से,
मेरा तारुफ़ कराते हैं,

कभी आशिक बताते हैं,
कभी दे देता करार मुझको कोई पागल,
कभी दीवाना बुलाते हैं,
कभी कोई मजनू भी कह देता,
कभी मुझे देवदास बताते हैं,
मेरी शख्सियत को इतना उलझा सा डाला है,

पहले इनको झुठलाता था,
अपनी जिरह से इनको खारिज बताता था,
अब मैं, मैं ही हूँ,
खुद को समझाता हूँ,
अभी तक,
मेरे नजरे-ख्याल जुड़ा थे तेरे बारे में,

ये इन लोगों की साजिश है,
तेरी बातें, तेरा ख्याल
सूरत भी तो तेरी पहले जैसी ही है,
पर ये शिकारी मुझ पर हावी हैं,
तू अजीब सी सिरहन है अब मेरी,
अपनी साँसो से ज्यादा, अब तेरा नाम लेता हूँ,

मैं हूँ कहाँ, तुझको ही अब खुद में, मैं पाता हूँ,
नाकाम कोशिश करता हूँ, तुझसे निकलने की
इन सबका ये एका है, या सच में मुहब्बत है,
यूं तो हार जाता हूँ, ये क्या हुआ मुझको,
अब हारना ही मैं चाहता हूँ,
पर इस बात से अब भी इंकार करता हूँ,

की मुझे तुझसे मुहब्बत है,
हाँ, कोई पल दिन में ऐसा नहीं आता,
जब मैं तुझको सोचा नहीं करता,
मेरे आईने में भी, क्यूँ तू मुस्कराती रहती है,
यूं है की,
मेरे दिमाग में हरारत है,

मेरी आंखों में शिकायत है,
जल्द पा लूँगा, ईजाद इनका,
तू ये मत समझना की
मुझे तुझसे मुहब्बत है,
हाँ, यह सच है,
बिस्तर की सिलवटों में तुझको, मैं पाता हूँ,

मैं किताबों के पन्ने पलटता हूँ
हर शब्द में तेरा मायना मैं पाता हूँ,
यूं है ये दिमागी लाचारी है,
पढ़ने की मेरी आदत में, थोड़ी सी बेकरारी है,
एक नींद ले लूँगा, सुकून पा लूँगा
तू मत समझना ये,
मुझे तुझसे मुहब्बत है,

हाँ ये सच है,
जब भी लब हिलते हैं मेरे अब
जिक्र तेरा ही होता है,
यूं तो वास्ता नहीं मेरा,
तेरे ठिकाने से,
पर खामों–खाँ ही,
अब गली के तेरे चक्कर लगता हूँ,

ये यूं है की,
कुछ ऐसी फिल्में देखी हैं,
गीत गुनगुना लेता हूँ,
कोई एक्जाम खास नहीं अभी पास,
खाली वक्त तेरी गलियों में गुजार मैं लेता हूँ,
पर तू मत समझना,
ये तुझसे मुहब्बत है,

कविता, शायरी से हटता था,
चिढ़ता था, इन्हें रचने वालों से मैं इतना,
समय यूं ही हीरे सा ये कोयला बनाते हैं,
पर शायद मेरी लंबी बीमारी है
ये कुछ तो असर छोड़ेगी,

अभी तक वैसे कुछ लिखा नहीं मैंने,
तुझको ही सोचा है,
तुझको ही लिखा है
कवि बनना, शायर कहलाना, नहीं थी मेरी ये चाहत,
मुझे भी शक सा है,
क्या मुझे तुझसे मुहब्बत है?

पर मैं इस बात पर कायम नहीं रहता,
विज्ञान को पढ़कर मैंने होश संभाला है,
मनोविज्ञान का अभी भी अध्ययन मैं करता हूँ,
मुहब्बत के जालों को हटाना,
इश्क़ के शिकंजे से लोगों को बचाना
पेशा ये मेरा है,

पर हैरान हूँ, जब खुद ही
इसके जालों को मैं बुनता हूँ,
इस कायनात में अब होती है बेचैनी
शिकंज–ए–इश्क़ में सहूलियत मैं पाता हूँ,
क्या असर ये इसका है,
की मुझे तुझसे मुहब्बत है,

अब भी मैं इस सच को झुठलाता हूँ,
है ये मेरी शायरी का जुमला,
की मुझे तुझसे मुहब्बत है,
तू मत समझना ये,
की
मुझे तुझसे मुहब्बत है।


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