बहुत सोचने के बाद भी जब कोई नतीजा न निकला
बहुत सोचने के बाद भी जब कोई नतीजा न निकला
बहुत सोचने के बाद भी जब कोई नतीजा न निकला
अजनबी राहों पर तब एक राही फिर अकेला ही निकला।
सफ़र की मुश्किलों से वह कभी घबराया नहीं
एक बार क्या गिरा, फिर कभी लड़खड़ाया नहीं।
परेशानियों को इनायत समझता रहा वह
खुद से ही हर घड़ी, खुद उलझता रहा वह।
ख़ामोश होकर वो बेसबर, खुद में सबर तलाशता रहा
ज़िन्दगी की डायरी में, लिखने का हुनर तराशता रहा।
जैसे जैसे मोड़ आते गए, रास्ता खुद-ब-खुद मुड़ता गया
रास्तों के इस तन्हा सफ़र में, हमसफ़र नया जुड़ता गया।
ज़ख्मी होने के बावजूद उसने चलना जारी रखा
नमी होने के बावजूद उसने जलना जारी रखा।
छटपटाने की वो आदत भी फिर धीरे-धीरे छूट गयी
और दर्द की थैली भी हिम्मत के शरारों से फूट गयी।
तमाम कोशिशों के बाद भी जब कोई नतीजा न निकला
अनजान राहों पर तब एक अजनबी फिर अकेला ही निकला।।