आधार व साधन
आधार व साधन
गाँव की संस्कृति सात्विक है,
परम्पराएं मेल-मिलाप का साधन,
परम्पराएं समाज का अभिन्न अंग हैं,
और, प्रेम समाज का आधार।
जब संस्कृति का उदय होता है
संग उदित होता है प्रेम अगर,
अस्तित्व पाते हैं गाँव व नगर
अन्यथा, फैलता है केवल जंगल राज।
समयानुरूप परम्पराएं बदलती हैं
नगरों, गाँवों का स्वरुप बदलता है
किन्तु, प्रेम स्थायी बना रहता है,
हर परिवर्तन का आधार बना रहता है।
अनुकूल परम्परों से
संस्कृति समृद्ध बनती है,
समाज का उत्थान होता है,
जब, इनके माध्यम से प्रेम
प्रसारित होता है।
प्रेम आधार है,
परम्परा साधन,
बस ऐसा ही है
हमारा ग्रामीण जीवन।।