रूह की कीमत
रूह की कीमत
अक्सर वो जब भी जोर से कहता है,
ये तो तय है कि वो झूठ कहता है।
खुद पे भरोसा जब ना हो यकीनन,
औरों को अक्सर दबाकर वो कहता है।
कहीं पर जाए उस पे जमाना न भारी,
सच को हमेश ही कमकर के कहता है।
श्मशानों का शहर है देख चलता गया,
मुर्दों को जिंदा दोपहर वो कहता है।
माना जमाने की मांग थी बदलता गया,
क्या क्या बदलेगा क्या बता क्या कहता है ?
रूह की कीमत भी तय कर दी बाजार में,
जमीर तो बचा रख अमिताभ ये कहता है।