आदिवासी बेटी
आदिवासी बेटी
नव समाज से दूर वनों में, जीवन जिनका चलता है।
प्रकृति माँ की पवित्र गोद में, बचपन जिनका पलता है।
मर्त्य आदिवासी कहलाते, जीवन मिट्टी में खिलता है।
नाश प्रकृति का जिनके उर को, सदा सदा ही खलता है।।
उड़ीसा के मयूरभंज में, संथाल जाति में जन्मी।
बीस जून सन अट्ठावन में, पड़ी भयंकर थी गर्मी।
द्रोपदी जब भूमि में आई, आई गर्मी में नरमी ।
पढ़ी-लिखी फिर शिक्षा बाँटी, बनी थी वह शिक्षा धर्मी।।
बिरांची नारायण टुडू की, बेटी आँगन खेली है।
श्याम चरण से शादी करने, कठिनाई भी झेली है।
दहेज मिला मात पिता को,गाय बैल और कपड़े भी।
रीति नीति संस्थान जाति की, बढ़ी धर्म की डोरी भी।।
राइरांगपुर नाम जिले की, पार्षद पद पर जीती थी।
दो हजार में बनी विधायक, रस विजय का पीती थी।
बन राज्यपाल झारखंड की, राज्य भर में वह छाई।
बन गई राष्ट्रपति भारत की, जन उर खुशियाँ भर आई।।
