टाट खाली हैं
टाट खाली हैं
सरकारी स्कूलों की भी दास्तां निराली है,
शिक्षा सुविधाएं हैं...फिर भी टाट खाली हैं।
जब 70 का दशक था,
तब अध्यापक से भय लगता था।
विलंब से पहुंचने पर डंडा का भय था।
अब माहौल बदल गया है...
शिक्षा में राजनीतिकरण के चलते,
शिक्षक की जगह अब
विद्यार्थियों का रोब बढ़ गया है।
जबकि सरकारी शिक्षा पद्धति सबसे निराली है।
सुविधाएं भरपूर हैं,फिर भी टाट खाली हैं।।
तब प्रत्येक विद्यार्थी,
गुरु से पहले पहुंचता था।
गुरु-आज्ञा के बिना,
पत्ता तक नहीं हिलता था।।
अब शिक्षा की जागरूकता नहीं प्रतिष्ठा मतवाली है।
सुविधाएं भरपूर हैं,फिर भी टाट खाली हैं।।
शिक्षा-तंत्र में राजनीति का
दखल बढ गया,
हजार जिम्मेदारियां
शिक्षक के मत्थे मढ़ गया।
बच्चों को घर-घर जाकर...
बुलाने का काम बढ़ गया,
शिक्षा का सवाल है
इसलिए शिक्षक का मौन बड़ गया।।
किसी को सुनाई नहीं देती यह ऐसी ताली है।
सुविधाएं भरपूर हैं, फिर भी टाट खाली हैं।।