आदिम प्रेम...
आदिम प्रेम...
जब सृष्टि में नहीं थी भाषाएँ
नहीं थे अक्षर
तब भी अभिव्यक्त होता था प्रेम
अपनी सम्पूर्ण पवित्रता में
निर्मल, निश्छल
अपनी पूरी ऊर्जा के साथ
शब्दों के आडम्बर से रहित...
अपने शाश्वत रूप में
सम्पूर्ण निष्ठा और सत्यता में
आँखों के भावों में तिरता
देह की रेखाओं से
समर्पित होता हुआ
तभी एकाकार था
सृष्टि के हर एक कण से
आओ हम भी
भाषा रहित निर्मल प्रेम की
डोर से बंध जाए
हो जाये एकाकार
सृष्टि के कण-कण से....।