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मानव सिंह राणा 'सुओम'

Abstract

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मानव सिंह राणा 'सुओम'

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सबके सब मानव हैं....

सबके सब मानव हैं....

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जंगलों से कम होते जा रहे है,

दिन प्रतिदिन सियार लोमड़ी,

चीते और लकड़बग्घे

गीदड़ और भेड़िये

हो रहा है पुनर्जन्म

बनते जा रहे सब के सब मानव है..


मनुष्यों में फैलता हुआ आक्रोश,

झुण्ड के साथ हिंसक होना,

लूट और अत्याचार की वारदातें,

यह मनुष्य का पशुवत व्यवहार

पशु नहीं वो सबके सब मानव हैं...


वो तलुए चाटने की आदत,

वो लोगों को बांटने की आदत,

अलग अलग झुंडों में रहना

आक्रोशित हो गुंडों में रहना

यह भी पशुता की निशानी है 

पशु नहीं वो सबके सब मानव हैं...


अब हमेशा के लिए 'सुओम' समझ जाओ

जब भी दो कदमों को पास पाओ

वो शरीर से जो है वो नहीं हैं

पुराने जन्म का पशु उनमें ही है

पशु नहीं वो सबके सब मानव हैं...


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