नारी मूर्ति नहीं इंसान है
नारी मूर्ति नहीं इंसान है
नारी शब्द खुद में ही पूर्ण शक्ति का प्रतिक है,
नारी चाहे ईश्वर में हो...
या किसी साधारण स्त्री का उल्लेख हो ,
यहाँ स्त्री प्रतिभा शाली और निर्भया हर एक है,
नारी कोई मूर्ति नहीं इंसान का ही रूप है।
यह कल आज और कल की नारी हे जो-
कहीं संस्कारी तो कहीं निडरता की निशानी है,
यह माँ, बेहेन, बेटी जीवन की कहानी है,
जिसे आज हर घर को सुनानी है,
नारी कोई मूर्ति नहीं यही बात सबको बतानी है।
नारी नहीं किसी की जरूरत....
ना किसी मूर्ति पर आधारित है,
ये तो सदियों से चली हुई प्रथा की जुबानी है,
जिसे आज मूर्ति नाम से हटानी है।
यह किसी का परिचय नहीं....
नारी का सम्बन्ध स्वयं खुदसे है,
नारी ईश्वर का स्वरुप है-
जो "त्याग, प्रेम व समर्पण की भावना" से नियुक्त है।
जैसे प्रेम में लीन कृष्ण की भक्ति में है,
कही समर्पण में विष्णु जी का आदर में है,
और कही महादेव के लिए तपस्या का त्याग में है,
हर रूप में नारी सुन्दर व परिपूर्ण है।
कभी रानी झाँसी जैसे स्वाभिमान से जीती है,
तो सती बनकर त्याग से मरती है,
कभी सीता बन अग्नि परीक्षा देती है,
तो कही दुर्गा के स्वरुप में आती है,
हर कदम पर सम्मान से जीती है।
होती नहीं लाचार, नहीं होती बेज़ुबान वो....
कभी उसके भाव को समझो,
रोती नहीं किसी के समक्ष वो,
नारी किसी का गौरव, तो किसी की शान है वो
तकलीफों से गुज़रती, और दुःख सबसे छुपती हे वो,
नारी मूर्ति नहीं नारी इंसान हे वो
इंसान हे वो।