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Abasaheb Mhaske

Abstract

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Abasaheb Mhaske

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अरे वो ! नादाँ यह कैसी प्रीत

अरे वो ! नादाँ यह कैसी प्रीत

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अरे वो ! नादाँ यह कैसी प्रीत तुम्हारी ?

प्यार दो , प्यार लो रीत हैं प्यारे 

समझ न आई तुझे पूरी जिंदगानी 

खुदाने कितनी सुन्दर दुनिया बनायीं 


तू न अच्छा इंसान बना न भाई 

अच्छा पति बना न अच्छा बेटा 

तू अच्छा बाप बना ,ना दोस्त बना 

तेरा जीना मरना फुजूल हुवा 


तू भूल गया तेरी जिम्मेदारी 

तू भूल गया सब दुनियादारी 

मातेसमान परस्त्री , नारी 

खुद ही खोदी कबर अपनी 


क्या हक़ था तुझे किसी के

जीने का हक़ छीनने का ?

अब तेरे नसीब मे सिर्फ

बद्दुवा और गाली ही होगी  


अब तू धोबी का कुत्ता

घर का न घाट का 

हर वक्त तुझे उसकी

चीख पुकार सुनाई देगी 


तू लाख कह दे मुझे

कोई फर्क नहीं पड़ता 

मगर उस बेचारी

निष्पाप कली की तुझे है लगेगी

 

तू जब तक जिन्दा रहेगा तक

हर तू घुट घूंट मरेगा 

खुदा से मौत की भीख मांगेगा

नरक यातना यही मिलेगी  


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