माँ नमामि गंगा
माँ नमामि गंगा
झर-झर बहती, प्राण दायनी को,
नत-मस्तक प्रणाम करो।
करो राष्ट्र कि स्वर्णमयी धारा की,
सेवा नित प्रति शाम करो।
दूषित है, जन पीड़ित है,
फिर संकल्प ठान निज काज करो।
तुम ठान दिशा धरा कि फ़िर से,
निज हरियाली फिर आज करो।
जाति ये भेद बखानो न कोई,
न धर्म कोई खतरे में है यारो।
पीड़ित जीवन दासनी माँ गंगा,
निज द्रण निश्चय कर मिल सब सवारो।
