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Vikash Kumar

Abstract

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Vikash Kumar

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जीवन दुविधा

जीवन दुविधा

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दिल पर पत्थर रखकर जीना, जीवन का मर जाना होगा,

जिसको फूल खिलाने होंगे, माटी में मिल जाना होगा,


धरती बंजर बहता पानी, ज्यादा दूर ना जा पाएगा,

लघुता के इस बौनेपन में, पहाड़ धैर्य का धँस जाएगा,

जाकर कहना मेरे मन से, जीवन धरती पर उगता है,


पर जीवन की रीत यही है, शूल कोई उर में धंसता है,

जिसको पार प्रवाह के जाना, उसको विष पी जाना होगा,

दिल पर पत्थर रखकर जीना, जीवन का मर जाना होगा,


मेरे मन के अंधक घट में, जीवन घुट घुट कर मरता है,

सावन बन नयनों में मेरे, झर झर कर झरता रहता है,

कैसी रही विकलता मेरी,इस पार प्रिय उस पार खुदा है,


जीवन की दो राह यहाँ पर, धरती से अंबर हुआ जुदा है,

तुमको फिर मरने की खातिर, जीवन को पी जाना होगा,

जिसको फूल खिलाने होंगे, माटी में मिल जाना होगा।


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