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samarth ramdas

Classics

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samarth ramdas

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मनाचे श्लोक - ४

मनाचे श्लोक - ४

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महासंकटी सोडिले देव जेणें।

प्रतापे बळे आगळा सर्वगूणे॥

जयाते स्मरे शैलजा शूलपाणी।

नुपेक्षी कदा राम दासाभिमानी॥३१॥


अहल्या शिळा राघवें मुक्त केली।

पदीं लागतां दिव्य होऊनि गेली॥

जया वर्णितां शीणली वेदवाणी।

नुपेक्षी कदा राम दासाभिमानी॥३२॥


वसे मेरुमांदार हे सृष्टिलीला ।

शशी सूर्य तारांगणे मेघमाला॥

चिरंजीव केले जनी दास दोन्ही।

नुपेक्षी कदा राम दासाभिमानी॥३३॥


उपेक्षी कदा रामरुपी असेना।

जिवां मानवां निश्चयो तो वसेना॥

शिरी भार वाहेन बोले पुराणीं।

नुपेक्षी कदा राम दासाभिमानी॥३४॥


असे हो जया अंतरी भाव जैसा।

वसे हो तया अंतरी देव तैसा॥

अनन्यास रक्षीतसे चापपाणी।

नुपेक्षी कदा राम दासाभिमानी॥३५॥


सदा सर्वदा देव सन्नीध आहे।

कृपाळुपणे अल्प धारीष्ट पाहे॥

सुखानंद आनंद कैवल्यदानी।

नुपेक्षी कदा राम दासाभिमानी॥३६॥


सदा चक्रवाकासि मार्तंड जैसा।

उडी घालितो संकटी स्वामि तैसा॥

हरीभक्तिचा घाव गाजे निशाणी।

नुपेक्षी कदा राम दासाभिमानी॥३७॥


मना प्रार्थना तूजला एक आहे।

रघूराज थक्कीत होऊनि पाहे॥

अवज्ञा कदा हो यदर्थी न कीजे।

मना सज्जना राघवी वस्ति कीजे॥३८॥


जया वर्णिती वेद शास्त्रे पुराणे।

जयाचेनि योगें समाधान बाणे॥

तयालागिं हें सर्व चांचल्य दीजे।

मना सज्जना राघवी वस्ति कीजे॥३९॥


मना पाविजे सर्वही सूख जेथे।

अति आदरें ठेविजे लक्ष तेथें॥

विविकें कुडी कल्पना पालटिजे।

मना सज्जना राघवी वस्ति कीजे॥४०॥



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