ज़िंदगी के बाद भी

ज़िंदगी के बाद भी

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पूर्वा सालों बाद घूमने निकली थी। पिछले ५ सालों से उसने खुद को घर की चार दीवारी में कैद कर रखा था। सबने बहुत समझाया बाहर निकले, सबसे मिले पर उस हादसे के बाद पूर्वा ने खुद को पूरी तरह बदल लिया। ना किसी से मिलना , ना कहीं जाना बस घर से ऑफिस और ऑफिस से घर ; यही उसकी दुनिया थी। कभी कभी आरुष के स्कूल जाती थी पेरेंट्स मीटिंग के लिए। एक ही शहर में रहते हुए अपने मम्मी-पापा से भी कम ही मिलती। ना दोस्त, न रिश्तेदार बस अपनी एक अलग ही दुनिया बना रखी थी उसने। अजय के असमय चले जाने से वो पूरी तरह टूट गयी थी, अब तो बस १० साल पुराने प्यार की खूबसूरत यादें ही उसके साथ थीं। अजय और वो कॉलेज फ्रेंड्स थे। एक दूसरे को दीवानों की तरह चाहते थे। २ साल तक अपने रिश्ते को अच्छी तरह से समझने के बाद शादी का फैसला लिया था।दोनों आत्मनिर्भर थे , समझदार थे घर वाले भी जल्दी ही मान गए और धूमधाम से शादी हो गयी। ३ साल तक दोनों अपनी प्यारी दुनिया में खोये रहे ; जैसे उन्हें किसी और की ज़रूरत ही न हो। एक दूसरे के परिवार का ख्याल रखना हो या घर की ज़िम्मेदारिया दोनों एक दूसरे का बारबारी से साथ देते। कभी कोई शिकायत नहीं।पूर्वा अगर किसी भी काम से हिचकिचाती तो अजय उसकी हिम्मत बढ़ाता।कहत'तुम सब कर सकती हो' ,और वो दुगुने जोश से कोशिश करती।नन्हें आरुष के आने की खबर ने तो खुशियों में चार चाँद लगा दिए थे। दोनों सातवें आसमान पर थे।

आरुष ८ महीने का था तब पूर्वा कि खुशियों को ग्रहण लग गया। एक एक्सीडेंट में अजय उसे छोड़ कर चला गया। बस तब से अजय की यादें ही उसकी ज़िंदगी थी। आरुष की परवरिश और ऑफिस के काम और कुछ था ही नहीं उसकी दुनिया में। सबने समझाया की एक नयी शुरूआत करें पर वो नहीं मानी और खुद को अजय के घर और उसकी यादों में कैद कर लिया।

पता नहीं कैसे वो इस बार ऑफिस ट्रिप पर जाने को राज़ी हो गयी। आरुष को अपने माँ-पापा के पास छोड़कर वो कैंप के लिए आ तो गयी, पर दिल वहीं अटका था; अजय की यादें और आरुष की फ़िक्र में। इन सब में उलझी कब वो इन पहाड़ो में अपने साथियों से अलग हो गयी पता ही नहीं चला। रास्ता भटकते एक गुफा में आ गयी थी ,दूर-दूर तक रौशनी नहीं थी।भूखी- प्यासी, डरी-सहमी पूर्वा अब थक चुकी थी।फोन में नेटवर्क भी नहीं था और बैटरी भी डिस्चार्ज। उसने अपने बचने की उम्मीद ही छोड़ दी थी।उसे बार- बार आरुष का ख्याल आता। और फिर उसे अजय की बात याद आय'तुम सब कर सकत, और वो हिम्मत कर फिर से उठी रास्ता ढूंढने की एक आखिरी कोशिश। थोड़ा आगे बढ़ी ही थी की सामने रौशनी दिखाई दी। रात का वक़्त था ये किसी टाॅर्च की रौशनी थी। पूर्वा पहले तो बहुत डर गयी, फिर भी आगे बढ़ी। एक लम्बी कद काठी का आदमी सामने था। उसने आवाज़ दी-" क्या आप मेरी हेल्प करेंगे मुझे यहाँ से बाहर जाना है"।

सामने से आवाज़ आई- "आइये मैं ले चलता हूँ "।

टाॅर्च की रौशनी में पूर्वा उस अजनबी के पीछे चल दी। पता नहीं कितनी देर तक अजीब से रास्तों से गुज़रते हुए दोनों चलते रहे। सुबह होने को आयी। हल्के उजाले में उस अजनबी को देखा, ओवरकोट पहने, कैप लगाए, आधा चेहरा मफलर से ढका हुआ। एक पल को ऐसा लगा जैसे अजय ही है। उसकी आँखों से आँसू बह निकले। अजनबी सारे रास्ते चुप रहा। मेन रोड पर पहुँच कर उसने सामने होटल की तरफ इशारा किया और बोला आपके साथी यहीं आसपास होंगे। यहाँ फ़ोन भी मिल जायेगा और चार्जर भी। फिर पूर्वा की तरफ हाथ बढ़ाया और बोला -"बाय-द-वे, मैं अजय सिन्हा वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर। कभी किसी भी मुश्किल में पड़ जाओ तो तुम सब कर सकती हो'। इतना सुनते ही पूर्वा का सर घूम गया आँखों के आगे अंधेरा छा गया। उसने हिम्मत कर के आँखें खोली , देखा तो दूर दूर तक कोई ना था। एक पल को पूर्वा को लगा जैसै वो नींद से जागी हो, फिर अचानक ही उसके चेहरे पर एक मुस्कान आ गयी। वो खुद से बोली -" मैं जानती हूँ अजय, ये तुम ही थे। तुम मुझे कभी अकेला नहीं छोड़ोगे। मेरा आत्मविश्वास बन कर हमेशा मेरे साथ रहोगे। हमेशा..ज़िंदगी के बाद भी


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