ज़िन्दगी और मौत के मासूम मोहरे!
ज़िन्दगी और मौत के मासूम मोहरे!


ज़िन्दगी और मौत अक्सर आंखमिचौली खेलती रहती है,और हम उसके मासूम मोहरे होते हैं, दरअसल हम कुछ कर भी नहीं सकते क्योंकि होनी पर किसी का वश कहाँ होता है?और हादसे तो बिनबुलाये मेहमान हैं।
अच्छा उस आंखमिचौली खेल की एक झलक मैं दिए देता हूँ,
अक्सर सुना होगा इस इश्क़,मोहब्बत,वफ़ा और प्यार को ज़िन्दगी कहते हैं और जब वो प्यार हमसे छीन जाए यानि ग़म,मातम,जुदाई और बेवफ़ाई को मौत। अब यहाँ से वो आंखमिचौली आरंभ होती है।
बेवफ़ाई में कोई ज़िन्दगी को हमेशा के लिए गले लगा लेता है,और कोई जीना छोड़ देता है।फ़र्क बस इतना होता है कि ज़िन्दगी को
हमेशा के लिए गले लगाने वाले को ज़िन्दगी चाह कर भी दुजा मौका दे नहि सकती क्योंकि ठहरना उसे मंजूर ना हुआ इसलिए जीत में उसे मौत मिली।पर जिसने जीना Iछोड़ा था,ज़िन्दगी उसे अक्सर मौका देती है क्योंकि ज़िन्दगी और मौत के इस शतरंज़ में उस मोहरे ने हार नही मानी,वो कुछ वक़्त के लिए ठहरा क्योंकि उसे जीत में ज़िन्दगी चाहिए थी मौत नहीं।
तो ज़िन्दगी और मौत के इस आंखमिचौली में अगर जीत में ज़िन्दगी चाहिए तो वक़्त की नजाकत को समझते हुए ठहरना जरूरी है,क्योंकि वो बिनबुलाये मेहमान बुरे वक़्त की तरह होते हैं, जिनका कटना तय है,फिर ज़िन्दगी जीतती ही है।