ज़िल्लत की ज़िन्दगी नहीं जीना
ज़िल्लत की ज़िन्दगी नहीं जीना
एक घंटे पहले जन्म हुआ था इस बच्ची का...
पर...बेटी हुई है यह जानकर बच्ची की माँ के चेहरे पर ऐसी मायूसी छाई थी मानो मातम मना रही हो। शमा कितना चाहती थी कि बेटा हो पर बेटी ने जन्म लेकर शमा की आगे की ज़िन्दगी की मुश्किलें जैसे बढ़ा दी थी।
"इतना सुन्दर बच्चा हुआ है तुम रोता काहे को है। माँ का पहला दूध पिलाओ उसे। कांछो केनो (रो क्यों रही हो) चुप हो जाओ!"
स्थानीय नर्स कुछ हिंदी कुछ बांग्ला मिश्रित आवाज़ में उसे डांट रही थी। और शमा की आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे।
नर्स ने ज़ब नन्ही प्यारी सी बच्ची को शमा की गोद में लाकर दिया तो उसकी रुलाई फूट पड़ी। ऐसा रूप... ऐसा गुलाबी रंग... राशिदा बी अब तो इसे भी मेरी तरह बनाकर छोड़ेगी।
बच्ची ऑपरेशन से हुई थी। अभी अभी तो शमा को होश आया था। नर्स ने रुई के फाहे जैसी नर्म मुलायम गुलाबी सी बच्ची को शमा की गोद में दिया तो एक पल को शमा अपना सारा दर्द भूल गई। बच्ची के लिए माँ का दूध जिसे कोलस्ट्रम कहते हैं वो देना ज़रूरी जो था।
नवजात बच्ची का माँ के स्पर्श से यह पहला परिचय था। माँ के दूध के रूप में अमृतपान करते हुए मानो उस बच्ची ने संसार का सबसे बड़ा सुख पा लिया था।
और.....
बच्ची को सीने से लगाते ही शमा की आँखें मातृत्व के एहसास से भर आईं थी। जिसे नर्स ने फिर वही समझा कि दर्द से शमा रो रही है।
इस बार ना जाने नर्स को शमा पर कैसे प्यार आ गया उसके पास आकर सर पर हाथ फेरकर बोली,
"कानो ना (रोओ मत) अभी तुम्हारा माँ को बुलाता है तब उसको बहुत अच्छा लगेगा!"
शमा समझ गई कि नर्स राशिदा बी को उसकी माँ समझ रही थी। समझे भी क्यों ना...? हॉस्पिटल रिकॉर्ड में राशिदा बी ने शमा की माँ की जगह ही अपना नाम लिखवाया था और पिता की नाम की जगह किसी मरहूम (स्वर्गीय) नासरुद्दीन का नाम लिखा हुआ था।
पर... शमा नर्स को कैसे बताती कि उसके कोठे पर माँ तो होती है पर पिता के नाम का कुछ पता नहीं होता।
अभी इस बच्ची का जन्म हुए मुश्किल से एक घंटा हुआ था और उसकी किस्मत लिखी जा चुकी थी। तभी तो शमा अपनी बच्ची के जन्म पर खुशियाँ मनाने की जगह मातम मना रही थी।
अब तक बच्ची अपनी माँ के आँचल की खुशबू पाकर और दूध पीकर तृप्त हो गई थी। नर्स ने उसे शमा की गोद से लेकर पालने में लिटा दिया था और डॉक्टर गौरी को बुला लाई थी जिन्होंने शमा का ऑपरेशन किया था। डॉक्टर गौरी को राशिदा और शमा की सच्चाई पता थी। उन्होंने आते ही शमा से कहा, "बहुत प्यारी बिटिया को जन्म दिया तुमने। अब अगले कुछ दिन इसे माँ का दूध दिया जायेगा!"
फिर नर्स को कहा, "जाओ राशिदा को मतलब शमा की माँ को बुला लाओ!"
बंगाली नर्स ख़ुश होकर राशिदा को बुलाने चली गई। उसे पता था पैसे वाले लोग हैं अच्छी बख्शिस देंगे।
राशिदा ख़ुशी ख़ुशी अंदर आई। शमा की गोद से बच्ची को लेते हुए शमा के कान के पास मुँह ले जाकर चुपके से बोली, "चलो बिटिया तो गोरी चिट्टी सुंदर सी है। आगे खूब कमाएगी। किस्मत वाली है तू शमा जो इतनी सुन्दर बेटी पैदा हुई है कि तेरा बुढ़ापा तक संवर जायेगा!"
अपनी नवजात बेटी के लिए ऐसे शब्द सुनकर शमा का मन कर रहा था कि अभी राशिदा बी का मुँह बंद कर दे और चीखकर कहे, "यह मेरी बेटी है, सिर्फ मेरी। इसे मैं कोठे में नहीं रखूंगी और ना ही इससे कोई गलत काम करवाऊंगी!"
पर अभी अभी ऑपरेशन से उठी थी। कमज़ोर शरीर और क्लान्त मन से चुपचाप लेट गई। थोड़ी देर में राशिदा बी कल आने का कहकर चली गई।
उसके जाते ही शमा का दिमाग तेज़ी से काम करने लगा। उसने डॉक्टर गौरी को बुलाया और उनको बताया कि वह अब उस कोठे में वापस नहीं जाना चाहती। बच्ची को इस दलदल से बाहर निकालना चाहती है।
बाद में डॉक्टर गौरी ने भी उसकी बात मान ली उनके पहचान के एक पुलिसवाले को कहा कि उसके अड्डे यानी कोठे पर छापा मारा जाए। उसकी बात मानकर पुलिस ने राशिदा बी के कोठे पर छापा मारा तो बहुत से जोड़े पकड़े गए, कुछ भाग जाने में कामयाब हो गए।
बाद में ज़ब राशिदा ने शमा को उस रेड के बारे में बताया तो शमा सब अनभिज्ञ होकर सुनती रही।
डॉक्टर और नर्स अब तक समझ चुके थे कि राशिदा शमा की माँ नहीं बल्कि कोठेवाली है। शमा के हाव भाव और बोल चाल से वह काफ़ी संभ्रांत लगती थी। इसके अलावा उसके बेटी हुई थी। इसलिए उसकी असलियत जानकर भी हॉस्पिटल के स्टाफ की सहानुभूति शमा के साथ थी। शमा ने डॉक्टर गौरी से बार बार निवेदन किया कि वह कैसे भी उसे और उसकी नवजात बेटी को उस जिल्लत की ज़िन्दगी से बचा लें। वह कोई भी काम कर लेगी पर उसे कोठे पर वापस ना ले जाया जाए। डॉक्टर गौरी ने शमा को पूरा आश्वासन दिया और समझाया कि इस काम को बड़ी ही सावधानी से करना होगा ताकि राशिदा बी या कोठे के किसी दलाल को कानों कान खबर ना हो।
इसके लिए डॉक्टर गौरी ने राशिदा को कुछ यूँ समझाया कि,
"अभी डिलीवरी के बाद शमा की स्थिति बहुत नाजुक है इसलिए उसे अभी कुछ दिन और अस्पताल में ही रहना पड़ेगा!"
राशिदा बी मान गई। बस इन्हीं कुछ दिनों में सब कुछ करना था। हॉस्पिटल से डिस्चार्ज करा के डॉक्टर गौरी ने शमा को कुछ दिन अपने घर में रहने को दिया। इस बीच डॉक्टर गौरी ने राशिदा बी को रोज़ रोज़ हॉस्पिटल आने से रोका यह कहकर कि अगर वह बार बार आती जाती रहेगी तो हॉस्पिटल में सबको उसकी असलियत का पता चल सकता है।
फिर... कुछ दिनों बाद शमा ने खुद राशिदा बी से कह दिया कि अब वह या उसकी बेटी उस कोठे जैसे दोजख में वापस नहीं जायेंगे और अगर राशिदा बी या उनके आदमियों ने कोई ज़बरदस्ती की तो शमा पुलिस में शिकायत कर देगी।
शमा के सख्त लहज़े और आत्मविश्वास से राशिदा बी एकदम नरम पड़ गई और शमा को दुआएं देकर चली गई।
अब सबसे पहले ज़रूरत थी शमा के आत्मनिर्भर होने की। तो इसके लिए डॉक्टर गौरी ने उसकी बहुत मदद की। उन्होंने शमा को पहले तो हॉस्पिटल में सफाई कर्मचारी नियुक्त किया फिर कुछ महीनों बाद उसे अस्पताल के काम सिखाकर बच्चों के वार्ड में ड्यूटी दिलवा दी गई।
शमा का प्यारा स्वभाव सबको अपनी ओर खिंचता जो था। अब हॉस्पिटल के बाहर शमा को एक कमरे का सेट मिला। वहीं बेटी के साथ शमा रहने लगी। अब बच्ची स्कूल जाती और शमा अस्पताल में काम करके एक इज़्ज़त की ज़िन्दगी जी रही थी।
अब कभी कभी शमा सोचती... अगर उसने डॉक्टर गौरी के साथ मिलकर सूझबूझ से काम ना लिया होता तो वह उस ज़िल्लत वाली ज़िन्दगी से कभी बाहर नहीं निकल पाती।
तभी उजाला आ गई और शमा उसके लिए खाना लगाने चली गई।
खाना खाते हुए उजाला अपने स्कूल की बात बताती जा रही थी और शमा मन्त्रमुग्ध होकर अपनी बेटी की बात सुन रही थी। इस नन्ही सी जान के आ जाने से शमा की ज़िन्दगी में उजाला फ़ैल गया था।
(समाप्त)
प्रिय दोस्तों, यह सही है कि हमारी हाथ की रेखाएं हमारा मुकद्दर लिखती हैं... पर हमारे कर्म में भाग्य को बदलने की असीम शक्ति होती है। शमा ने हिम्मत की और खुद के लिए एक इज़्ज़त की ज़िन्दगी चुनी।
धन्यवाद