Vaibhav Dubey

Abstract

5.0  

Vaibhav Dubey

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युद्ध के परिणाम..

युद्ध के परिणाम..

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"कोई बचा लो मेरे बेटे को"चीखते हुए रामदीन खटिया पर उठ बैठा। पूस की सर्द रात में पसीने से लथपथ बदन, धौकनी की भांति तेज चलती हुई सांसें और भय से कांपते हुए होंठ कुछ बुदबुदाए जा रहे थे। अपने अंगौछे से पसीने को पोंछते हुए वह बड़बड़ाया,"बड़ा ही भयानक स्वप्न था। हे ईश्वर मेरे बच्चे की रक्षा करना उसे मेरी आयु भी दे दीजिए पर उसका कोई बाल भी बांका न कर पाए। "रामदीन ने स्वतंत्रता के पूर्व खरीदी हुई घड़ी जिसकी सेकेंड की सुई टूट चुकी थी को तकिए के नीचे से निकला और उसे जैसे ही खोला .."जन गण मन अधिनायक जय है" के संगीत की मधुर ध्वनि ने उसके हृदय में रात को भयानक स्वप्न के भय से कहीं दबी हुई देशभक्ति की भावना को सामने ला दिया था। वह खटिया पर बैठे-बैठे ही झुककर धरती माँ को स्पर्श करते हुए हाथों को माथे से लगाकर बोला, "जय हिंद जय भारत" फिर घड़ी में देखा रात के तीन बज रहे थे खटिया के सिरहाने वाली दीवार पर टँगे हुए अंग्रेजी कैलेंडर के बचे हुए बड़े से टुकड़े में देखा जिसके ऊपर कोने पर कैपिटल लेटर में DECEMBER 1971 लिखा था।

"ओह ! आज तो सोलह दिसम्बर है"वह बोला। लम्बी गहरी सांस लेकर सिरहाने पर रक्खी हुई पीतल की कलशिया के ऊपर औंधे रक्खे हुए गिलास को उठाया फिर उसे भरकर गटागट दो गिलास पानी पी गया। फिर बोला, "भारत पाकिस्तान के बीच चल रहे युद्ध के कारण ही शायद मुझे ऐसा स्वप्न आया है अत्यधिक प्रेम जो करता हूँ अपने लाल से। उसकी माँ के अचानक स्वर्ग सिधारने के बाद बस वही तो मेरा एक मात्र सहारा रह गया है।

मुझे गर्व है कि मेरा पुत्र एक सैनिक है और मेरा सौभाग्य है कि मैं उस वीर सैनिक का पिता हूँ। " सामने मेडलों से भरी हुई अलमारी को देखकर उसके सीने की माप और गर्दन की अकड़ दोनों ही बढ़ गई थी। रामदीन ने सोने का बहुत प्रयास किया परन्तु पुत्रमोह और चिंता ने उसकी नींद ही उड़ा दी थी । अंततः वह चल ही पड़ा अपने पुत्र से मिलने....(वास्तव में एक पिता के हृदय में भी असीम ममता होती है परंतु वह कुछ विशेष परिस्थितियों में ही प्रदर्शित होती है)

युद्ध क्षेत्र तक पहुंचते-पहुंचते सूरज डूब गया था,अंधकार ने अपने पैर फैला दिए थे हाथ में लालटेन लिए हुए हुए वह आगे बढ़ता जा रहा था तभी किसी की तेज आवाज सुनकर वह ठिठक गया, "कौन है वहाँ?जल्दी बोलो नहीं तो मैं गोली मार दूंगा"

"मैं हूँ साहब लेफ्टिनेंट जनरल आशीष का पिता। "रामदीन धीरे से बोला।

अरे आप यहां क्या कर रहे हैं ?आपको पता है आज हम सबने पाकिस्तान पर विजय प्राप्त की है हजारों पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया है। मैं आपको जानता हूँ चाचा जी दो वर्ष पूर्व मैं आशीष के साथ आपके गांव आया था। याद है आपको ?उस फौजी ने पूछा?

रामदीन ने लालटेन उस फौजी के मुंह के सामने लाकर उसे पहचानने का भरसक प्रयास किया परन्तु उसे कुछ याद नहीं आया। अच्छा बेटा यह बताओ मेरा पुत्र कहाँ है उससे मुझे मिलवा दो। फौजी ने लगभग लड़खड़ाती जुबान से कहा, "अरे बाबू जी आशीष की ड्यूटी यहां नहीं लगी है वह तो सियाचिन में है जो यहां से बहुत दूर है एक माह के बाद छुट्टी लेकर आएगा वो घर "अच्छा बेटा वो ठीक तो है न?उसने पूछा।

"हाँ बाबू जी एकदम ठीक है"ऐसा कहते हुए उस फौजी की नजरें झुक गईं।

रामदीन ने कहा, "अच्छा बेटा मुझे युद्धक्षेत्र में जाने की इजाजत दे दो मैं वहाँ जाकर सभी घायलों को पानी पिलाना चाहता हूँ। "

फौजी बोला,"बाबू जी अब युद्ध क्षेत्र में कोई घायल नहीं बचा है सब को अस्पताल पहुंचा दिया गया है अब सिर्फ शहीदों की लाशें हैं वहाँ।

रामदीन गिड़गिड़ाकर बोला," बेटा मुझे फिर भी जाने दो वहाँ जाने कितने रामदीन के बेटों की आंखें सांसे थमने के बाद भी अपनों के इंतजार में खुली होंगीं मैं उन्हें अपने हाथों से बंद करना चाहता हूँ। उसकी आँखों में आँसू आ गए थे।

फौजी ने बुझे मन से रामदीन को इजाजत दे दी। रामदीन एक हाथ में लालटेन और एक में पानी की बाल्टी लेकर चल पड़ा युद्धक्षेत्र में। जहां तक लालटेन की रोशनी जा रही थी लाशें ही लाशें नज़र आ रही थी तभी उसके पैर से कुछ टकराया उसने लालटेन की रौशनी में देखा कटा हुआ हाथ पड़ा था उसके बगल में शहीद सैनिक की एक आंख लटक पड़ी थी कहीं कटे हुए सर, बिखरी पड़ी हाथों की उंगलियां, सरों को ढकते हुए घुटनो से उल्टे मुड़े हुए पैर। वहां का दृश्य बड़ा भयावह था पत्थर हॄदय का व्यक्ति भी दहाड़ मार कर रो पड़े और रामदीन तो एक प्रेम व ममता से भरे हुए हॄदय वाला व्यक्ति था उसकी आँखों से अश्रुओं की धार फूट पड़ी। वह रोते रोते बोला, "हे ईश्वर हम सब आपके ही बनाये हुए पुतले है आपने ही हम में प्राण फूंके हैं, हमें अनेकों सम्बन्धों में जोड़ा है और सबसे बड़ा सम्बन्ध तो इंसानियत का होता है।

यही है इंसानियत जहां इंसान द्वेष-दंभ व लालच के युद्ध में अपनों के ही लहू का प्यासा हो गया है। इतिहास गवाह है तराइन,पानीपत,हल्दीघाटी या अन्य कोई भी युद्ध हो चाहे किन्हीं भी परस्थितियों में किया जाए चाहे किसी भी उद्देश्य को लेकर किया जाए उसके परिणाम बहुत भयावह होते हैं राज सिंहासन के लालच में युद्ध क्यों करते हैं लोग? मृत्यु के पश्चात तो सब यहीं रह जाना है हजारों लाखों सैनिकों की शहादत और लोगों के प्राणों की आहुति के पश्चात प्राप्त हुआ राजसिंहासन भी "

"आआहहह.हह "दर्द भरी कराह ने रामदीन की ईश्वर से की जा रही प्रार्थना को बीच में ही रोक दिया। उसने देखा थोड़ी दूर पर ही लाशों के ढेर के नीचे कोई कराह रहा है वह एक पल गवाएं बिना तेज दौड़ता हुआ वहां पहुंचा और शीघ्रता से लाशों को उसके ऊपर से हटाने लगा । लाशों को हटाते हटाते उसके बूढ़े शरीर की ताकत जबाब देने लगी थी परंतु उसने हिम्मत नहीं हारी फिर थके हाथों से उसे लगभग खींचते हुए उसे सैनिकों के रक्त से लाल हो चुकी धरती पर लिटा दिया।

लालटेन की रौशनी में उसके चेहरे को रक्त की सूखी मोटी परत ने ढक रखा था आंखों की जगह रक्तरंजित दो गड्ढे नज़र आ रहे थे उसकी कटी हुई दाहिनी बांह आस-पास कहीं नजर भी नहीं आ रही थी। पांव की चारों उंगलियां कटकर पंजे से ही जुड़ी हुई लटकी हुई थीं। रामदीन ने उसे पानी पिलाने के लिए उसके मुंह में जैसे ही उंगली डालकर उसे खोलना चाहा सैनिक के मुंह से रक्त का फव्वारा फुट पड़ा जिसके साथ उसके टूटे हुए दांत भी बाहर आ रहे थे।

रामदीन का पूरा बदन कांप रहा था न जाने क्या हुआ उसे कि उसने सैनिक का सर अपनी गोद में रख लिया फिर उसे पानी पिलाने लगा। रामदीन ने पूछा, "तुम कौन हो बेटा ?मैं अभी फौजी को बुलाता हूँ तुम्हारा इलाज हो जाएगा।"

सैनिक के कांपते हुए होंठो से सबसे पहले निकले हुए स्वर,"भारत माता की जय" ने रामदीन को चीख मार कर रोने के लिए विवश कर दिया था। सैनिक की ऐसी देशभक्ति देखकर रामदीन ने उसे सेल्यूट किया और उसे बाहों में भर लिया । सैनिक ने बचे हुए बाएं हाथ से अपना कटा हुआ दाहिना हाथ टटोला। फिर एक आह भरी और बचे हाथ से रामदीन का हाथ पकड़ कर धीरे से फुसफुसाया "मेरे प्यारे बाबू जी" इतना कहते ही उसका शरीर निस्तेज पड़ गया उसकी गर्दन एक ओर लुढ़क गई।

एक तेज प्रकाश पुंज उसके मुख से निकल कर आकाश की ओर बढ़ गया।

रामदीन भी उस फुसफुसाहट को पहचान गया था। वह चीखकर रो पड़ा अरे ...अरे...यह तो मेरा ही लाल है मेरे लाल मैं तुम्हारा मुख तक नही देख सका तुम्हें जी भर कर निहार भी नहीं सका । उसके सीने में तेज दर्द उठ गया उसे ऐसा लग रहा था मानो उसका सीना दर्द से फट ही जायेगा। अपने बेटे को सीने से चिपकाए हुए वो बैठा रहा उसके रुदन को सुनकर बादल भी रो पड़े तेज बारिश में उसके पुत्र के मुख पर जमी रक्त की परत धुल गई। रामदीन ने अपने पुत्र को देखा और देखता ही रह गया उसकी आंखें खुली की खुली रह गईं सिर पुत्र के ऊपर लुढ़क गया एक प्रकाश पुंज निकला और पहले से ही प्रतीक्षारत सैनिक पुत्र के शरीर से निकले प्रकाश पुंज से मिल गया । ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे दोनों पिता व पुत्र हाथ जोड़कर दुनिया वालों से प्रेम से मिलकर रहने की भिक्षा मांग रहे हों।


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