मजबूर माँ
मजबूर माँ
"दूर रहो,मेरे फूल से बच्चे को मत छूना अपने गन्दे हाथों से"शबीना इतनी जोर से चीखी थी कि रेल के डिब्बे का प्रत्येक व्यक्ति उस भिखारिन जैसी लग रही महिला की तरफ देखने लगा जिसके साथ लगभग चिथड़े पहने हुए छोटे-छोटे दो बच्चे और थे।महिला ने तेजी से हाथ पीछे कर लिया उसकी आंख से आसुओं की धार फूट पड़ी।
तभी कलीम बच्चे के लिए दूध लेकर लौट आया था उस महिला को देखते ही कलीम के मुँह से निकला"अरे ! तुम ! तुम क्या कर रही हो यहाँ ? तुम्हें तुम्हारे पैसे मिल गए न?अब तुरन्त चली जाओ यहाँ से।"
उस महिला ने एक नज़र किलकारी भरते हुए बच्चे को देखा और साड़ी के पल्लू से आंसू पोंछते हुए वहां से चली गई। कलीम ने धीरे से कहा यही कमला है जिसने गरीबी के चलते अपने तीन बच्चों में से एक हमें देकर हमारी सूनी गोद को खुशियों से भर दिया।इतना सुनते ही शबीना ने झट से बच्चे को गोद में उठाया और कलीम को हिक़ारत की नज़रों से देखते हुए जिस ओर कमला गई थी लगभग दौड़ लगा दी।कमला को देखते ही बच्चे को उसकी गोद में देकर उसके पैरों में झुक गई और बोली "एक माँ ही अगर माँ की ममता को नहीं समझेगी तो कौन समझेगा ?तुम जब चाहो अपने बच्चे से मिलने घर आ सकती हो।"
डिब्बे में उपस्थित सभी लोगों के हाथ तालियां बजा रहे थे ।रेलगाड़ी धीरे-धीरे प्लेटफार्म पर गति पकड़ने लगी थी जैसे एक नई जिंदगी की शुरुआत हो रही हो।