नारी या कठपुतली
नारी या कठपुतली
अपने संगी-साथियों के साथ आँख मिचौली खेलती हुई मुनिया बहुत खुश थी आज पूरे दो माह के बाद उसे खेलने का अवसर मिला था
क्योंकि आज बाऊ जी सुबह से ही घर पर नहीं थे।मुनिया ने माँ से पूछा" अम्मा जे बताओ बाऊ जी किते गए।"
माँ बोलीं"बाऊ जी शहर गए है अपएं मित्र के घरे वा से दस हजार रुपइया उधार लैवे के लाएं
बैल खरीदने है उन्हें।"
सुनकर मुनिया उछल पड़ी थी।
उसके जन्म के समय उसके छोटे भाई की तबीयत बहुत खराब हो गई थी तभी से बाऊ जी को उससे नफरत सी हो गई थी वो मुनिया को कभी गोद में नही उठाते थे
जब बाऊ जी दूकान बन्द करके आते तो मुनिया और उसका छोटा भाई दौड़कर उनसे लिपट जाते बाऊ जी भाई को तो अच्छी अच्छी टॉफियां देते लेकिन मुनिया को झिड़क देते।मुनिया वहीं खड़ी सोचती रह जाती कि उसका दोष क्या है पर मासूम मन कुछ समझ ही नहीं पाता।
मुनिया थी बहुत होशियार ।बाऊ जी ने स्कूल जाने नहीं दिया फिर भी शहर से आई डॉक्टर दीदी से (जो कि उसके बगल वाले घर में ही रहने आईं थी) उसने खड़ी बोली में बात करना और अंग्रेजी के भी कुछ शब्द बोलना सीख़ लिए लेकिन कभी बाऊ जी के डर से उनके सामने कुछ नहीं बोलती थी
कुछ दिन पहले गांव के मन्दिर में एक देवी जी आईं थी
वो जो कह देती पूरा गांव उनका आदेश मानता
मुनिया को भी देवी जी पर पूरा विश्वास था
पिछली बार जब मुनिया अपने छोटे भाई के साथ मन्दिर गई थी तो देवी जी गांव के एक व्यक्ति से कह रही थी"हे मूर्ख तू अपने धन से मेरी एक स्वर्ण मूर्ति बना कर मुझे भेंट कर फिर तेरा कल्याण होगा।"वो व्यक्ति सहर्ष ही तैयार हो गया और देवी जी के पैर छू कर अपने स्थान पर बैठ गया।
मुनिया ने भी अपने नन्हें हाथों से देवी माँ के पैर छूने की कोशिश की लेकिन भीड़ होने के कारण पहुँच नहीं पाई थी मुनिया का वहां ऐसा मन लग गया कि उसे आने में बहुत देर हो गई थी तब बाऊ जी ने मुनिया को पकड़ के बहुत मार लगाई उनका गुस्सा इतना बढ़ गया की चूल्हे में रखी जलती लकड़ी से पैरों को दाग दिया और बोले"आज के बाद अगर तुम्हें बाहर देख लओ अगर हमने तुम्हाई टांगे तोड़ देंगे घर के काम में अम्मा का हाथ बटाओ लड़कियन वाले तो कोनहुँ कामई नहीं हैं
जब देखो तब खेलन के लाएं भाग जाती हैं।"
तभी किसी की पकड़ ने उसे पुरानी यादों से बाहर निकाला आँख में पट्टी बांधे हुए उसकी सहेली ने उसे पकड़ लिया था अब मुनिया की आँख पर पट्टी बाँध दी गई और उसे गोल घुमाकर छोड़ दिया गया सभी मित्रों की आवाज सुनकर वो उस ओर दौड़ जाती कभी हाथ से कभी पैर से छूने की कोशिश करती
और वो कामयाब भी हुई किसी को उसने पकड़ लिया था वो जोर से चिल्लाई"हो.....पकड़ लिया मैंने। "
लेकिन यह क्या यह हाथ तो बहुत बड़े और तगड़े हैं और हाथ में यह कड़ा तो बाऊ जी का है कड़े को टटोलते हुए मन ही मन ऐसा सोच कर वो अंदर तक कांप गई ।
मुनिया के मन में बचने का एक उपाय आया
उसे मन्दिर वाली देवी जी याद आ गई। उसने पट्टी हटाये बिना ही अपनी गर्दन को जोर से झटकना शुरू कर दिया और आवाज भारी कर के बोली "हरिया तेरे थैले में जो दस हजार रूपये हैं उनसे बैल मत खरीद उनसे एक छोटा सा मन्दिर बनवा और मेरी मूर्ति स्थापित कर तभी तुम्हारा और पूरे गांव का कल्याण होगा।"
अपनी बच्ची के मुख से ऐसे वचन सुन कर हरिया हतप्रभ रह गया जो कुछ मुनिया ने कहा था वो सोलह आने सच था।वो चौंक कर बोला"अरी! मुनिया ई का कह रही तू तुझे कइसन पता जे बात।"
मुनिया ने आँख से पट्टी हटाते हुए कहा"हे मूर्ख हरिया मैं मुनिया नहीं देवी माँ हूँ जो तुम्हारी पत्नी की सेवा से प्रसन्न होकर तुम्हारे घर आई हूँ और डर से बेहोश होकर जमीन पर गिर गई उसने मुनिया को उठाया और घर की तरफ चल पड़ा।
गांव के कुछ बच्चों ने (जो कि मुनिया के साथ खेल रहे थे ) भी सबकुछ सुना और देखा था।अपने-अपने घर जाकर सारी बात बताई देखते ही देखते यह बात पूरे गांव में जंगल की आग की तरह फ़ैल गई।और पूरा गांव हरिया के घर के बाहर एकत्रित होने लगा।
घर के अंदर मुनिया को होश आ गया था उसने रोते-रोते सारी सच्चाई हरिया को बता दी हरिया को फिर बहुत गुस्सा आया और वह मुनिया को मारने के लिए लाठी तलाशने लगा
तभी दरवाजे पर दस्तक हुई हरिया ने दरवाजा खोला गांव के प्रधान को अपने छोटे से घर में देखकर वो आश्चर्य चकित रह गया बाहर झांक कर देखा लगभग पूरा गांव जुड़ा हुआ था।
हरिया ने प्रधान से पूछा"का बात है प्रधान जी हमरा से कोनहुँ भूल होये गई का अगर हुई होये ता हमका माफ़ी दई देओ।"
प्रधान मुस्कुरा दिया और हरिया के कन्धे पर हाथ रखते हुए बोला"अरे ! हरिया डरो नाहीं तुमसे कोनहुँ अपराध नहीं भओ है तुम तो जे बताओ कि देवी माँ कहाँ हैं हम सब उनहीं के दर्शन की खातिर हियां आये हैं।"
हरिया के दिमाग में पैसा कमाने की युक्ति आ गई वो बोला "प्रधान जी हम तो खुदई देवी माँ की पूजा करन जाये रहे पहली आरती आपई के शुभ हाथन से होये जाये के चाही आप सब लोग बैठो हम अभ्याल तैयारी कर के बुलाये रहे।"
ऐसा कह कर हरिया अंदर गया और मुनिया के आगे हाथ जोड़कर बड़ी नम्रता से बोला"देवी माँ हमका छमा कर देई हम तुमका पहचान नहीं पाये तुम तो हमरी सब कुछ हो।"और आगे बढ़कर मुनिया के पैर छू लिए।
मुनिया ने झटके से अपने पैर समेट लिए।वो अपने बाऊ जी के बदले हुए रूप से बहुत आश्चर्यचकित हो गई।
मुनिया को तैयार किया गया लाल चुनरी में वास्तव में देवी माँ ही लग रही थी वो।
प्रधान ने आरती प्रारम्भ की और अंत में सौ का नोट निकाल कर थाली में रख दिया।
पूरे गांव ने माँ की आरती गाई और कुछ न कुछ चढ़ावा चढ़ाया।
मन्दिर की स्थापना भी प्रधान और गांव वालों ने करा दी मूर्ति भी स्थापित हो गई ।सुबह शाम की आरती के चढ़ावे ने हरिया की तो जिंदगी ही बदल दी।उसके पास अब प्रधान से भी ज्यादा दौलत हो गई परन्तु उसकी भूख शांत नहीं हुई।
मुनिया को तो बस एक कमरा दे दिया गया था जिसमें उसका बचपन गुजरने लगा।
इस सब से मुनिया खुश तो नहीं थी लेकिन बाऊ जी की डांट न मिलकर प्यार मिलना उसे अच्छा लगता था इसलिए वो चुप ही रही और करती रही जो उसके बाऊ जी चाहते थे।
जब मुनिया ने किशोरावस्था में कदम रखा उसका सौंदर्य मन को रिझाने वाला था ।
उसका एक अनन्य भक्त महेंद्र और वो एक दूसरे को आँखों ही आँखों में पसन्द करने लगेऔर पसन्द धीरे धीरे प्यार में बदल गई।मुनिया को भी अब इस झूठी देवी माँ के चरित्र से घिन आने लगी थी और एक रात दोनों ने घर से भागने का फैसला किया दोनों साथ में रूपये पैसे समेट कर गांव बाहर आ कर शहर के लिए रवाना हो गए
बस में निश्चिन्त सोते हुए महेंद्र को देखकर मुनिया मुस्कुराई और भविष्य के सलोने सपनों में खो गई।शहर पहुँच कर दोनों ने शादी कर ली।कुछ दिन तो सब कुछ ठीक चला पर धीरे धीरे महेंद्र के व्यवहार में परिवर्तन आने लगा वो शराब के नशे का लती हो गया था।घर में रखे सारे पैसे उसने शराब में उड़ा डाले और मुनिया को फिर देवी बनने के लिए दबाब डालने लगा
अंततः होने वाले बच्चे के भविष्य और घर की दयनीय परिस्थितियों को सोचकर एक बार फिर मुनिया देवी माँ बन गई बस महेंद्र और मुनिया को छोटा सा नाटक करना पड़ा बाकी तो देश की जनता के इस अन्धविश्वास का फायदा ढोंगी बाबा व देवियों को अच्छे से उठाना आता है।
लोगों का जमघट रोज सुबह शाम उसकी सेवा में तत्पर रहने लगा मुनिया के पुराने अनुभव से उसे अपनी दैवीय शक्तियों का झूठा प्रदर्शन करने में अधिक परेशानी नहीं हुई।वक़्त गुजरने लगा और उसके प्रति विश्वास ने लोगों के दिलों में अपनी जगह बना ली।
एक रोज एक महिला अपने हाथों में अपनी बच्ची का हाथ थामे मुनिया के सामने आकर खड़ी हुई और गिड़गिड़ा कर बोली- "हे देवी माँ मेरी बच्ची को बचा लो।"और जोर जोर से रोने लगी।
मुनिया ने कहा" पहले आप शांत हो जाएँ, क्या हुआ इस बच्ची को ?"
महिला ने जो कहा उसे सुनकर मुनिया के चेहरे के भाव बदलते चले गए।
वो बोली"देवी माँ मेरे पति मेरी इस फूल सी बच्ची को अपने लालच की आग में झौंकना चाहते हैं वो इसे देवी बना कर झूठा प्रचार कर रहे हैं कि मेरी बच्ची में दैवीय शक्तियां हैं। आप तो वास्तव में एक देवी हो कृपा करके मेरी बच्ची के बचपन को बचा लें।"
मुनिया की आँखों के आगे स्वयं के बचपन से लेकर अभी तक का सारा घटना क्रम एक फ़िल्म की तरह गुजरने लगा उसके साथ भी तो यही हुआ था कहाँ जी पाई वो अपना बचपन
काश उसकी माँ ने भी बाऊ जी के खिलाफ आवाज उठाई होती तो आज उसका जीवन यूँ नर्क न होता जहाँ वो एक *कठपुतली* है मालिक ने जब चाह नचा दिया।क्या है उसका स्वयं का आस्तित्व ?ऐसा सोचते हुए उसकी आँखों में बोझ बन रहे आंसू गालों पर लुढ़कते हुए नीचे गिर कर मिट्टी में मिल गए।