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Vaibhav Dubey

Children Stories

4  

Vaibhav Dubey

Children Stories

एक था बचपन

एक था बचपन

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"पापा.. प्लीज मुझे जाने दो न! मेरे सारे दोस्त मेरा इंतजार कर रहे हैं।मैं टीम का कैप्टन हूँ पापा...मैं ही नहीं गया तो क्रिकेट मैच कैसे होगा...प्लीज ..प्लीज...प्लीज ..पापा"

रोहन अपने मासूमियत से लबरेज लफ्जों से मेरे पैरों पर अपने नन्हें हाथों से लगभग मसाज करते हुए घर के बाहर गली में होने वाले क्रिकेट मैच में जाने की जिद कर रहा था।

नो.नो.नो..तुमने अपना रिपोर्ट कार्ड देखा है ?नम्बर कितने कम आये हैं!जाओ अपने रूम में पढ़ाई करो..मैं घर के आंगन में कुर्सी पर बैठा हुआ और आधी नाक पर चढ़े हुए चश्मे से रोहन को गुस्से से देख रहा था वो जमीन पर मेरे पैरों के पास बैठा हुआ था..और मेरी तेज आवाज सुनकर दरवाजे पर अपने कान लगाए हुए रोहन के दोस्तों में खुसुर पुसुर शुरू हो गई थी..."आज तो नहीं आ पा रहा रोहन...उसके पापा बिल्कुल roll no 21 कार्टून के कंस की तरह हैं...जो कृष्णा को खेलने से रोकने के लिए प्लान बनाते रहते हैं,गन्दे अंकल"एक बच्चे  ने कहा तो दूसरा बोला,"मेरे पापा तो नोबिता के पापा की तरह हैं मुझे रोज खेलने देते हैं।"


उनकी धीमी आवाज़ को भी मैं आराम से सुन पा रहा था मेरा गुस्सा और बढ़ गया लगभग चिल्लाते हुए मैंने कहा,"तुम जा रहे हो कि नहीं जा रहे अपने रूम में तुम्हें तुम्हारे इन आवारा दोस्तों की संगति ने बिगाड़ रक्खा है।"सब बच्चे वहां से खिसक लिए... रोहन की आंखों में आंसू आ गए वो थोड़ा आगे बढ़ा और फिर हाथ में पकड़ी हुई बॉल को जोर से फर्श पर पटककर तेजी से अपने पैर पटकता हुआ वहां से चला गया...बॉल का अब उछलना बंद हो गया था वो धीरे-धीरे लुढ़कती हुई मेरे पैरों के बिल्कुल पास आ कर रुक गई...मैंने अपने दाहिने पैर से उसे जोर से किक लगाई ...वो सामने वाली दीवार से टकरा कर फिर मेरे पैरों के पास आ गई ,मैंने फिर उसे किक किया ...पता नहीं क्यों मुझे खेलने में मजा आ रहा था...अचानक मेरी नज़र अपने कमरे के दरवाजे से मुझे आश्चर्य भरी नजरों से देखते हुए रोहन पर पड़ी ...मैं ऐसे झेंप गया जैसे मेरी चोरी पकड़ी गई हो और मेरा खेल इंडिया-पाकिस्तान के 20-20 मैच में अचानक बारिश होने से बाधित होने जैसा ही रुक गया था।


रोहन ने अपना दरवाज़ा बंद कर लिया . .और मैं अपने बचपन की यादों में खो गया...मैं भी तो क्रिकेट का दीवाना था सुबह चार बजे ही खेलने के नाम पर उठ जाता था पर जिस दिन पढ़ाई के लिए उठना हो तो मजाल है कोई उठा ले ...रो- रोकर सर पर आसमान उठा लेता था। आज डिग्रियों के साथ-साथ अच्छी जॉब ,बड़ा घर, लम्बी गाड़ी सब तो है मेरे पास।बाबू जी भी खेलने से मना नहीं करते थे पर नियम के बहुत पक्के थे अगर उन्होंने कह दिया कि एक घण्टा ही खेलना है तो बस उससे एक मिनट भी 

ज्यादा नहीं होता था।


मैं सोच रहा था कि बचपन कभी भूतकाल में नहीं बदलता हमेशा वर्तमान रहता है बस हम बचपन पर उम्र के अन्य पड़ाव का पर्दा डाल देते हैं।मैं उठा और रोहन का दरवाजा खटखटाया ।रोहन उदास चेहरा मेरे बनावटी गुस्से वाले चेहरे के सामने था जैसे ही मैं मुस्कुराया रोहन के आंखों में चमक जाग गई फिर मैं जोर से हँसा रोहन भी किसी फूल की तरह खिलखिला दिया ।मैं उसको गोद में उठाकर मुख्य दरवाजे तक लेकर आया उसको बैट और बॉल पकड़ाई फिर दरवाज़ा खोल दिया...



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