योगिनी

योगिनी

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"दीदी, जयमाल के लिये मेरे लह्ँगे का कितना खराब कलर पसंद किया आपने और सस्ता भी। आपको तो पता है नकुल की पसंद कितनी शानदार है"योगिनी की छोटी बहिन रागिनी ने उसकी शादी के लिये कपड़ो मे एतराज जताया। बी एस सी करने के बाद उसकी शादी उसके पसंद के लड़के से तय हो गई थी। दो माह बाद विवाह था। "ठीक तुम और नकुल जाकर अपनी पसंद का ले आना। " "दीदी मेरीइंजीनियरिंग कालेज की फीस जमा करने की डेट इसी हफ्ते है, याद है न?"सिद्ध नाथ ने कहा। सिद्ध नाथ रागिनी से छोटा और इसी वर्ष उसने इन्जियरिंग कॉलेज मे प्रवेश लिया था। "अरे बाबा, याद है। मुझसे चेक लेकर जमा कर देना"योगिनी ने कहा। इसी समय सबसे छोटी बहिन पद्मिनी ने फरमाईश की। जो हायर सेकेंडरी मे पढ़ रही थी। "दीदी हमारे स्कूल की ट्रिप जा रही है, मै भी जाऊंगी, पैसे जमा करने है। कल दे देना। " "कल तुम्हे भी पैसे दे दूँगी। क्लास टीचर से पूछ लेना कितने पैसे जमा होने है" योगिनी घर की धुरी है। भाई बहिन, मां पिता से फरमाईश न कर बड़ी बहिन योगिनी से ही मांगते है। राजाराम रिटायर हुए तो तब योगिनी संस्कृत मे एम ए कर चुकी थी बीएड उसने किया हुआ था, इंटर कॉलेज मे व्याख्याता नियुक्त हो गई। राजा राम जी प्रायमरी स्कूल मे शिक्षक थे। सीधे और ईमानदार व्यक्ति।

अपना काम पूरी निष्ठा से करने वाले, ऐसी ही इनकी धर्मपत्नी, ईश्वर पर आस्था रखने वाली, अपने ही परिवार सीमित गृहणी थी। घर की व्यवस्था राजाराम जी की पेंशन, योगिनी की पे, और स्वघर के ऊपर बने दो कमरो के आये किराये से चलती। राजाराम जी का नरम गरम स्वास्थ, और पत्नी का अस्थमा, कुल मिलाकर गाड़ी लड़खड़ाती जीवन की पटरी पर चल रही थी। योगिनी ही परिवार का दायित्व संभाले है। योगिनी लगभग तीस बरस की, पर रूप लावण्य की अनोखी छटा उसके चेहरे पर बरसती। मैदे सा रंग, पूडी के मले आटे सी स्किन की कसावट, बिना काजल के कजरारी आँखे, तीखी नाक, पांखुरी से होठ, घनी केशराशी, इस उम्र मे भी आकर्षण की संभावनाओ को जगा देती।

उम्र के इस पड़ाव तक, उसके सहपाठी, सहकर्मी कई व्यक्ति जीवन मे आये, प्रेम अनुरोध, विवाह प्रस्ताव भी रखे पर परिवार के दायित्व निर्वहन के आगे उसे कुछ अच्छा नहीं लगा। पहिले पिता का बोझ कम करुँ, भाई बहिन की शिक्षा, विवाह कर, अपना कर्तव्य निभाने के बाद ही अपने बारे मे सोचेगी, ये विचार उसके मन मे सर्वोपरि रहे। रागिनी की शादी सान्न्द संपन्न्ं हुई, कुछ घर की बचत, कुछ उधार, और योगिनी का योगदान। नकुल और रागिनी की जोड़ी बहुत खूबसूरत लग रही थी। रागिनी बिंदास किस्म की लड़की थी। उसने ज़िद कर कर के दहेज का बढ़िया सामान लिया, बिना ये परवाह किये की उसके बाद दो बहिने और है शादी की। भाई की पढाई है। योगिनी ने अपनी सारी बचत उस पर खर्च कर दी। रागिनी की विदा हुई, । बेटी के सहयोग से राजाराम जी ने एक बेटी ब्याह कर कन्या दान का पुण्य लाभ लिया। छोटे भाई सिद्ध नाथ की पढाई पूरी होते ही उसे केम्पस के माध्यम से चेन्नई मे एक अच्छी कंपनी मे जॉब मिल गया। इधर रागिनी के दोनो बच्चो की डिलीवरी मायके मे हुई। दोनो बार बच्चो के नाम करण संस्कार का धूमधाम से उत्सव मना। रागिनी ने केवल अपने और बच्चो के ही नहीं ससुराल के परिवार के लिये भी महँगे उपहार की माँग रखी। वो ससुराल मे अपनी नाक ऊँची रखना चाहती थी। अब तो भाई भी कमा रहा है। राजाराम जी और योगिनी ने दोनो बार उसे मन पसंद उपहार देकर ससुराल भेजा।

इधर सिद्ध नाथ साल भर तो घर पर पैसे भेजता रहा, फिर धीरे धीरे उसने पैसे भेजना बंद कर दिया। फोन भी कभी कभी करता। राजाराम जी ने पैसे न भेजने पर शिकायत भी की। उसने तमाम बहाने बना दिये। योगिनी ने उसे दिवाली पर आने के लिये कहा, उसने छुट्टी न मिलने का बहाना बना दिया। राजा राम जी पत्नी का अस्थमा उन्हें परेशान करने लगा। बार बार अस्पताल मे एडमिट करना पड़ता। एक दिन सिद्ध नाथ वापिस लौटा, पर वह अकेला नहीं था, उसके साथ एक लड़की थी। माँग मे सिन्दूर और गले मे मंगल सूत्र पहिने हुए। सिद्ध नाथ उसका परिचय कराते हुए योगिनी से बोला--जीजी ये जानकी है। हमने शादी की है, आपकी भाभी और अम्मा-बाबूजी की बहू" योगिनी मुस्करा दी।

लड़की तमिल थी, रंग साँवला जरुर था, पर चेहरे मे आकर्षण था। पूरे परिवार ने उसका स्वागत किया। उसने भी राजा राम जी, उनकी पत्नी, और योगिनी के पैर छुए। पद्मिनी के गले लगी। घर के मंदिर मे जा भगवान को प्रणाम किया। कुछ ही दिनो मे वो सलोनी लड़की ने पूरे घर का मन मोह लिया। जानकी तो योगिनी की सहेली बन गई । जानकी ने योगिनी को बताया उसके मां, अप्पा, जब वो साल भर की थी तब कार एक्सिडेंट मे दोनो नहीं रहे। वो उसे उसके अंकल आँटी के पास छोड़कर, अपने बीमार मित्र को देखने अस्पताल जा रहे थे। तबसे अंकल आँटी ने उसे पाला।

जानकी ने बताया----"सिद्ध हमारे पड़ौस मे किराये से रहते थे। सिद्ध चेस बहुत बढ़िया खेलते, और मेरे अंकल भी चेस के शौकीन। सिद्ध मेरे घर आने लगे। अंकल और सिद्ध की चेस खेलने की बैठके होती, कॉफ़ी मै बनाकर देती। कभी कभी मै सितार पर गाने भी सुनाती, आँटी भी हमारा साथ देती। आगे जानकी ने बताया--यहीं सिद्ध से मेरी मुलाकाते बढ़ी। हम दोनो ही एक दूसरे को पसंद करने लगे। अंकल, आँटी को कोई एतराज नहीं था। लेकिन सिद्ध को डर था, आप लोग इस रिश्ते को स्वीकार नहीं करेंगे। एक तो अलग अलग प्रांत, दूसरे दो कुँवारी बहिने। अंकल ने सलाह दी, यहीं से तुम शादी करके अपने घर जाओ। आशीर्वाद लो उनका । पेरेंटस बच्चों से ज्यादा अलग नहींं रह सकते। थोड़ा नाराज जरुर होँगे, फिर माफ कर देँगे।, सादे समारोह मे हमारा विवाह हुआ बस हम आप लोगो का आशीर्वाद लेने आ गया। ठीक किया न दीदी"योगिनी ने जानकी को अपने गले लगा लिया। बोली--बिल्कुल ठीक किया मेरी प्यारी सहेली"। सिद्ध नाथ की छुट्टियाँ खत्म हुई, चेन्नई जाने की तैयारी शुरु हुई। पूरे परिवार ने जानकी को बहुत से उपहार दिये। लगा जैसे बेटी विदा हो रही हो। प्यार वो सागर है जिसमे जाति, भाषा, प्रान्त डूब कर एक हो जाते है। विदा की बेला मे सबके आँसू घुल मिल कर एक हो रहे थे। पद्मिनी अब कॉलेज जाने लगी थी । उम्र के साथ उसका लावण्य निखार पर था, चंचलता और ज़िददीपन उसके स्वभाव मे भर गया था ।

चन्द्रकलाओं सा बढ़ता रुप गर्वित हो गया जैसे। राजा राम जी की पत्नी को इस लड़की की बहुत चिंता है। वो अब योगिनी से पद्मिनी की शादी की चर्चा करती, उन्हें डर है कि वो लड़की हाथ से न निकल जाय। योगिनी सोचती की मां, बाबा ने कभी उसके बारे मे क्यो नहीं सोचा, वो केवल जिम्मेदारियाँ निभाने के लिये है। काश वो जॉब नहीं करती, क्या पैसा कमाना, घर की जिम्मेदारी निभाना अपराध है। उसी समय उसे अपनी गुरुता का आभास हुआ, क्या सोचने लगी इतनी कृपण हो गई अपने कर्तव्य के लिये। नहींं, आज वो पद्मिनी को समझाएगी, और उसके विवाह के लिये सुपात्र भी तलाश करेगी। ऊपर दो कमरे के सेट मे नया किरायेदार आया, नील बैंक मे मैनेजर, सुदर्शन, और कुंवारा। शादी क्यो नहीं की पूछने पर उसका जवाब होता, ---"मेरी पसंद घर वालोको पसंद नहीं आती जो घरवाले पसंद करते है मुझे नहीं भाती"। धीर गंभीर योगिनी को वह अक्सर कॉलेज पैदल ही आते जाते देखा करता, एक बार उसने उससे पूछ ही लिया"आप विभाग अध्यक्ष है, एक गाड़ी क्यो नहीं ले लेती, क्यो पैदल कॉलेज जाती है" योगिनी ने उसकी ओर देखा और बोली"पैदल चलना स्वास्थ्य के लिये अच्छा होता है" नील बोला--"क्या उत्तम स्वास्थ की इस कोशिश मे मै आपका साथ दे सकता हूँ, मेरा बैंक भी आपके कॉलेज के पास है, हमारा साथ रहेगा। "योगिनी ने कोई जवाब नहीं दिया। दूसरे दिन नील योगिनी के समय पर ही घर से निकला, बाईक न लेकर पैदल ही। कुछ तेज कदम बढ़ा कर योगिनी के करीब हो लिया। उसे देख योगिनी हँस दी, बोली"स्वास्थ योग चेतना"नील ने भी हँस कर जवाब दिया"आपका दिया ही ज्ञान है"। दोनो ही खिलखिला उठे। उसे योगिनी भाने लगी। धीरे धीरे बाते मुलाकातें बढ़ी।

आँखों में सुनहरे सपने सजने लगे। योगिनी का जन्म दिन था, नील उसके लिये सुन्दर सी साड़ी लेकर आया, योगिनी ने उसे सम्भाल अपनी अलमारी मे रख दिया। कॉलेज से छूटते हुए योगिनि और बैंक से निकलते हुए नील मिलते तो फिर किसी पार्क या कॉफ़ी हाऊस मे बैठ घंटो गप्पे मारते।

नील ने यहीं उससे शादी का प्रपोस किया पर योगिनी चाहती थी की पहले वह पद्मिनी की शादी से निपट ले, ताकि मां बाबा भी चिंता मुक्त हो जाय, उसके बाद ही अपने बारे मे सोचेगी। योगिनी ज्यादातर अपने परिवार के बारे में बातें करती। बाबा का स्वास्थय, रागिनी की टाइम बे टाइम पैसों की डिमांड, जानकी की सरलता ये ही उसके विषय होते। हां कभी अपने कॉलेज और कुलीग की भी बातें करती। नील को ये बातें बहुत बोरिंग लगती वो चाहता प्यार और रोमांस की बाते हो। उसने गौर किया की योगिनी के चेहरे पर लकीरें दिखने लगी है। बालों में चाँदनी झांकने लगी है। जो योगिनी उसे नितांत सुन्दरी लगती थी अनायास ही थकी, और उबाऊ दिखने लगी।

नील को ये बात भी नागवार लगी, योगिनी ने उसकी दी हुई साड़ी आज तक क्यो नहीं पहिनी ? उसने योगिनी से कई बार इस बात की शिकायत भी की। योगिनी ने कहा वह किसी अच्छे अवसर पर पहनेगी। नील ने खीज कर कहा भी था--वो अच्छा अवसर कभी आयेगा क्या। " इधर कुछ दिनो से नील उससे खिंचा सा रहता, योगिनी के साथ पैदल चलना भी उसने कम कर दिया। योगिनी कहीं साथ चलने को कहती तो वह बहाने बना देता। नील योगिनी से पांच साल छोटा था, उसे शायद योगिनी का ढलता रूप रस हीन लगने लगा था। योगिनी महसूस कर रही थी कई दिनों से नील की उपेक्षा को, आज उसने सोचा साफ बात करेगी नील से। वो क्या चाहता है। आज उसने अलमारी से नील की दिया उपहार वो सुन्दर साड़ी पहिन उससे मिलने का निश्चय किया। पर साड़ी है कहाँ ? पूरी अलमारी खंगाल ली उसने, साड़ी कही न दिखी। तभी दरवाजे पे आहट पा वो बाहर आई, सामने नील और पद्मिनी खड़े थे, पद्मिनी ने वही साड़ी पहिनी थी, गले मे मंगल सूत्र पहना हुआ था। माँग भरी हुई थी। सिर घूम गया योगिनी का, अलमारी से साड़ी पद्मिनी ने निकाली, वो वही बैठ गई, सूनी आँखो से देख रही थी माँ थाली मे दीप अक्षत, जल लेकर दोनों का स्वागत कर रही थी। नज़र उतार रही थी दोनों की।

राजा राम जी, झूले पर बैठे चाय की चुस्की के साथ आराम से दैनिक अखबार पढ़ रहे थे। बड़े अक्षरों मे तीसरे पेज पर खबर थी "छोटी बहिन अपनी बड़ी बहिन की सौतन "बनी। नज़र उतार कर राजा राम जी की पत्नी ने बेटी दामाद को घर मे प्रवेश करवाया।


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