यह स्वाभाविकता
यह स्वाभाविकता


"सब कार्य स्वभाव के अनुसार होते हैं"
जैसे चिड़ियाएं गीत निष्प्रयोजन ही स्वाभाविक रूप से ही गाती हैं। उनके गीत गाने का कोई प्रयोजन नहीं होता। वास्तव में इस पूरे अस्तित्व में जो भी चल रहा है वह निष्प्रयोजन ही चल रहा है और एक स्वाभाविकता लिए हुए है। यह तो मनुष्य की कर्म चेतना (एक्शन कॉन्शसनेस) ही इतनी प्रगाढ़ हो गई है कि उसकी कर्मों की स्वाभाविकता को अनुभव करने की संवेदना लुप्त हो गई है। स्वाभाविक कर्म होने का अर्थ है कि स्वयं की आन्तरिक अचेतन अवचेतन की स्मृति के अनुसार कर्म होना। स्वाभाविक कर्म होने का अर्थ है प्राकृतिक मानसिक अवस्था (सत रज तम अवस्था) से उद्भूत होने के अनुसार कर्म होना। मनुष्य के बहुत से कार्यों का यदि आप निरीक्षण करोगे तो पाओगे कि वे कार्य उससे स्वाभाविक रूप से ही हो रहे होते हैं। जैसी जिस समय मनुष्य की सहज निज प्रकृति होती है वैसे ही कार्य उससे सहज स्वाभाविक रूप से होते हैं। बहुत बार बहुत से कार्यों में तो आप पाओगे कि वे निष्प्रयोजन ही होते हैं। मनुष्य कार्य कर रहा होता है और उन कार्यों का उसका कोई प्रयोजन नहीं होता। सिर्फ किए चला जाता है एक स्वाभाविकता की स्फुरणा के कारण। यदि मनुष्य कोई कार्य उद्देश्य पूर्वक करते भी हैं और उन्हें यह लगता है कि वे यह कार्य इस या उस प्रयोजन से कर रहे हैं। पर फिर भी उस प्रयोजन के पीछे भी अचेतन अवचेतन की सत रज तम की स्वाभाविक स्फुरना ही अंतर्निहित होती है जो उसे निष्प्रयोजन बनाती है। Un natural में भी नेचरीलिटी छिपी होती है। अस्वाभाविक भी स्वाभाविक बन गया होता है तब कार्यों में प्रकट होता है। यानि कि सभी प्राणी मात्र (चेतनाओं) के द्वारा कार्य उनकी निज प्रकृति के अनुसार स्वाभाविक (नेचुरल) रूप से ही होते हैं।