ये कैसा प्यार-भाग ४
ये कैसा प्यार-भाग ४
( पिछले भाग से आगे)
सोनू - "देहरादून में इसका परिवार है,पापा डॉक्टर हैं, भाई विदेश में इंजीनियर है, लखपति हैं अपनी स्कूटी में आती है, यहाँ अपनी मौसी के यहाँ रहती है, पर्स में हमेशा हजार दो हजार से ज्यादा ही रहते हैं उड़ाती भी बहुत है, मेरे बर्थ डे पे मुझे मोबाइल गिफ्ट कर रही थी पर मैंने नही लिया।"
संजय- ( कुछ सोचते हुए) "यार सैटिंग हो जाऐ तो लाइफ बन जाऐगी।"
"अब इसकी भी अलग कहानी है, हाँ-हाँ लड़कियों के बारे में सोच के उछलता रहता है, हाँ-हाँ-हाँ" ( विजय,संजय पर हँसता है )
(तो फ्रैण्ड्स कैसी लग रही है कहानी ? अभी संजय बाबू क्या- क्या कारनामें करते हैं, पढ़ते रहिये )
(अंजलि मार्केट से घर लौट रही है अपनी स्कूटी में सोचते विचारते, मन ही मन मुस्कुरा रही है, अब आप ही बताइऐ हैं न गन्दी बात, गाड़ी ड्राइव कर रही है और ख्यालों में खोई है, अरे समझाओ इसे, पता नहीं क्या सोच रही है, आओ मन में पढ़ते हैं )
ये तो अपने सोनू के ख्यालों में खोई है, और सपनों में उसके साथ घूम रही है, लोग इन्हें दीवाने कह रहें हैं और ये खुश हो रही है, बार-बार अपने हाथ में कुछ देखकर मुस्कुरा रही है, देखें क्या है हाथ में, ओ माई गॉड, ये तो सोनू का नाम है ! ये तो सोनू को हद से चाहती है शायद, मतलब संजय का अंदाजा सही है।
( दुकान के पास गाड़ी रोककर )
"भैया एक कोक प्लीज !"
( पर्स से पैसे निकालती है, अरे पर्स में भी सोनू का फोटो ? पैसे देकर कोक डिक्की में रखती है और फिर घर की तरफ चल देती है, घर पहुँचती है, अन्दर से कुछ आवाजें आ रही हैं, आओ हम भी सुनें )
"आंटी, ये अंजलि कहाँ रह जाती है, आई नहीं अभी तक !"
"आती होगी बेटे, तुम तो जानती ही हो उसे !"
( बाहर गाड़ी पार्क करते हुए अंजलि सुन लेती है )
"अच्छा, ये कार्टून मेरे घर आई हुई है देखती हूँ आज इसको ! "
( अंजलि धीरे से अंदर जाती है और पीछे से उसकी आँखें बन्द कर लेती है और लड़के की आवाज बनाकर कहती है )
"डार्लिंग, आज तो तुमको नही छोड़ेंगे, हा-हा-हा, आज तो हम अपने साथ ले जाऐंगे।"
( यह सुनकर लड़की डर जाती है और चिल्लाती है )
"अ..अ..आंटी-आंटी ! क..क..कौन हो तुम ? छोड़ो आंटी !"
( यह सुनकर अंजलि जोर से हँस पड़ती है )
"हा-हा-हा, डरपोक कहीं की, क्या रे, क्या सोचा कोई गुंडा आ गया, ही-ही-ही।"
"तू,अंजलि ! शैतान कहीं की तूने तो डरा ही दिया था अभी देखती हूँ तुझे।"
( आपस में थोड़ा लड़ती हैं फिर गले मिलती हैं)
( क्रमश:)
