ये छोटे लोग
ये छोटे लोग
"मम्मा टी वी इज नाॅट बर्किग ....व्हाट शुड आई डू।" मिंकू की अनमनी आवाज़ ने उसे फिर परेशान कर दिया।
"ये आजकल के बच्चे जरा भी समझदार नहीं है, एक घंटे से लैपटाप पर गेम खेल रहा है, फिर भी खुश नहीं है।" वह बड़बड़ाई। "मिंकू थोड़ी देर और अपना गेम खेलो, अभी आती हूँ।" रीना बोली और फिर पैकिंग खोलने में लग गयी।
रीना जोकि बैंक मैनेजर के पद पर दो दिन पहले ही अपने परिवार के साथ इस शहर में ट्रांसफर होकर आयी थी। उसके पति कमल एक मल्टीनेशनल कम्पनी में कार्यरत थे और सप्ताह में दो दिन ही घर आ पाते थे।
कमल अपने परिवार के नियमित रह सकें इसलिए बहुत प्रयासों से रीना को यहाँ ट्रांसफर मिल पाया था।
बहुत ढूंढने के बाद शहर के पाश एरिया में घर किराए पर लेने के बाद आज सुबह ही सामान शिफ्ट किया था। उसे इस बात की बहुत चिंता थी कि उसके बच्चे कहीं हिंदी बोलना ना सीख जाएं, हिंदी को भूलकर इंग्लिश बोलना ही सीखे इसलिए उसने अपने मिंकू को शुरू से कान्वेंट स्कूल में डाला था और स्वयं भी उससे इंग्लिश में ही बात करती थी।
" ये मूवर्स एंड पैकर्स वाले सामान सही से ला तो देते है, पर लगाना तो मुझे है। कल से बैंक भी ज्वाइन करना है। वीकेन्डस पर ही हो पाएगा धीरे धीरे। ये कमल कहाँ रह गये। नौ बज रहे है।" यह सब सोच ही रही थी रीना कि दरवाज़े की घंटी बजी।
शायद कमल आ गये सोच ही रही थी कि आवाज़ सुनी "हैलो बेटा, कैसे हो मम्मी कहाँ है? जब तक बाहर आती तब तक मिंकू ने दरवाज़ा खोल दिया था।
"ओह यह तो वही है अब घर आ गयी। दोपहर को मैनें साफ कह तो दिया था कि कोई मदद नहीं चाहिए।"
यह मालती थी जो रहती तो उसी कालोनी में थी, पर उसका रहन सहन यहाँ की हवा से मिलान नहीं खाता था। ससुर के बनाये मकान का सहारा था पति तो अपने सरल स्वभाव के कारण बस कामभर ही व्यापार कर पाता था।
मालती एक मृदुभाषी कोमल हृदयी महिला थी जो रीना के पड़ोसी होने के नाते आज खाना लेकर आयी थी उसके साथ उसके दोनों बच्चे थे। बेटा मिंकू का हम उम्र लग रहा था और बेटी थोड़ी बड़ी थी।
मिंकू के फैले खिलौने देखकर दोनों चहक कर उसके पास जाकर बैठ गये। मालती बोली "आप लोग आज ही आये हो, मैनें सोचा आज व्यवस्था नहीं हो पायेगी तो खाना मैं ले चलती हूँ।"
"जी धन्यवाद, इसकी कोई जरुरत नहीं थी। आगे से परेशानी न लें आप" रीना ने रुखाई से कहा।
बच्चे मिंकू के साथ बातें करना चाह रहे थे पर रीना का रुख देखकर मालती ने बच्चों को लेकर वहाँ से चले जाना ही ठीक समझा।
कमल ने घर आने पर जब खाने का टिफिन देखा तो पूछने पर रीना ने बड़ा बुरा सा मुंह बनाकर कहा " बराबर में यह जो छोटा सा घर है वही से आया है।"
कमल ने खोलकर कहा " आलू पूरी है, खुश्बू भी अच्छी आ रही है, मैं फ्रैश होकर आता हूँ फिर खाते है।"रीना सुनते ही बिफर पड़ी बोली" मैनें तो पिज्जा आर्डर कर दिया तुम्हें इन छोटे लोगों के यहां का खाना हो तो खा लेना।"
आज सरिता जी, जो कालोनी की सैक्रेटरी है, के यहां बहुत चहल पहल है। नया क्लब मेम्बर जो जुड़ा है, उसके स्वागत में एक छोटी चाय पार्टी है।
रीना बहुत खुश है बैंक में सब ठीक चल रहा है, मेड मिल गयी है,मिंकू डे बोर्डिंग में प्रवेश पा गया है।
उसकी और कमल की लाइफ की गाड़ी सही पटरी पर चल रही है और अब तो उसके पास उसके स्तर की मित्र मंडली है। उसे बेहद खुशी है सब ज्यादा से ज्यादा इंग्लिश में बात करती थी।
सुबह घर से निकलने पर मालती से सामना होने पर उसके अभिवादन का जवाब बस सिर हिलाकर देती थी रीना।
क्लब की मासिक बैठक मे मालती को न देखकर रीना सोचती अच्छा ही किया जो मैनें मालती से दूरी बनायी यह तो इन लोगों के स्तर की नही है।
मिंकू का जन्मदिन आने पर कमल के लाख कहने पर उसने मालती के बच्चे नहीं बुलाए। ठेठ हिंदी बोलने वाले गंवार बच्चों को कौन बुलाए।
कालोनी के अपने मित्रमडंली के बच्चों को बुलाकर उस दिन फूली न समा रही थी रीना। उसके बच्चों के साथ इंग्लिश में बात कर रहे आए सभी बच्चे आनंद का वातावरण उत्पन्न कर रहे थे।
सब कुछ सही चल रहा था। रोज की तरह कमल आँफिस और मिंकू स्कूल निकल गये थे वो भी बैंक पहुँच कर अपने काम मे व्यस्त थी।
अचानक उसके माँ पापा का फोन आया कि आज वो पहुँच रहे है। रीना ने सोचा कि जल्द ही वह निकल लेगी।
पर काम में कुछ ऐसी फंसी कि उसे देर हो ही गयी ऊपर से रही सही कसर ट्रैफिक ने निकाल ली।
देर होती देख उसने सरिता जी को फोन करा कि वो उसके माँ पापा को अपने घर ले जाऐं पर सरिता ने दो टूक कह दिया कि वह आज घर पर नहीं है।
परेशान होकर उसने एक एक कर अपनी सभी मित्र मंडली को जब फोन किया तब सब पर कोई न कोई बहाना था। थक कर उसने पापा से घर के बाहर खड़े रहने को कहा।
घर पहुँच कर जब उसने देखा माँ पापा वहाँ नहीं हैं। उसने उन्हें फोन करा तब पापा ने कहा वो उसकी सहेली के यहां है।
पापा का इतना कहना ही था तो रीना ने देखा सामने से मालती आ रही है, साथ में माँ पापा है।
माँ ने बताया वो तो घर के बाहर खड़े थे, पर जब मालती ने उन्हें बाहर खड़ा देखा तो ज़िद करके अपने साथ ले गयी और उनके बहुत मना करने पर भी नाश्ता बना लायी, माँ लगातार बताये जा रही थीं । रीना के पास शब्द ही नहीं थे मालती का शुक्रिया अदा करने के लिये उसे ऐसा लग रहा था जैसे अचानक उसका कद हिंदी भाषी मालती से बहुत छोटा हो गया है।