Priyanka Gupta

Comedy Drama

4.5  

Priyanka Gupta

Comedy Drama

यात्रा यातना बनते बनते रह गयी

यात्रा यातना बनते बनते रह गयी

4 mins
305


" जल्दी करो, नहीं तो ट्रैन छूट जाएगी ,वैसे भी केवल ५ मिनट के लिए रूकती है। " सामान गाड़ी में रखते हुए मैंने कहा।

नितेश का रेलवे स्टेशन टाइम पर पहुंचने का रिकॉर्ड कुछ सचिन तेंदुलकर के ९९ पर आउट होने जैसा ही है। हमेशा एकदम अंतिम पल पर पहुंचना और दौड़ भागकर ट्रैन पकड़ना। अंतर बस इतना है सचिन आउट हो जाता है,लेकिन नितेश कैसे न कैसे ट्रैन पकड़ ही लेता है।

लेकिन इस बार मैं कोई जोखिम लेना नहीं चाहती थी,हमने १५ दिन के छुट्टियों की योजना बनाई थी,ट्रैन छूटने का मतलब था सम्पूर्ण योजना पर पानी फिरना। चूँकि १५ दिन के लिए जा रहे थे तो सामान भी ज्यादा था ,इसलिए सामान के साथ हम भी ट्रैन में सही तरीके से रखे जा सके तो कुछ दोस्तों को भी तकलीफ देने का सोचा गया। हम २ और हमारे २ दोस्तों ने रेलवे स्टेशन की तरफ कूच किया।

अपने पिछले अनुभवों से सीखते हुए हमारा सही समय पर स्टेशन पहुंचना पहला तीर मारना था। महसूस हुआ कि कोई किला ही फ़तेह कर लिया हो । नितेश तो फूलकर गुब्बारा हो रहा था ,मानो कौन बनेगा करोड़पति में एक करोड़ रूपया जीत गया है । मैं यह सोचकर खुश थी कि आगाज बढ़िया हुआ है ,तो अंजाम भी शानदार ही होगा।

उद्घोषिका लगातार घोषणा कर रही थी कि ,"कविगुरु एक्सप्रेस कुछ ही समय में पहुंचने वाली है।"

 ट्रैन का स्टेशन पर पहुंचना हुआ और हम ट्रैन की तरफ लपके।ट्रैन की तरफ जाते हुए जैसी कि मेरी आदत है ,मैं ट्रैन पर लिखे हुए सूचना पट्ट को पढ़ रही थी। हमें तो गुवाहाटी जाना था ,लेकिन वहां पर कानपुर लिखा हुआ था। मैंने देखकर भी अनदेखा कर दिया। क्योंकि मुझे अपनी आँखों से ज्यादा उद्घोषणा पर भरोसा था। जैसा कि ट्रैन का ठहराव २ मिनट्स का था ,तो हमने सामान समेत अपने आप को जल्दी-जल्दी ट्रैन में धकेला।

ट्रैन अपने गंतव्य की तरफ रवाना हो गई। मैं और नितेश एक दूसरे की तरफ विजयी भाव से देखते हुए मुस्करा रहे थे। अब तो बस हमें अपनी सीट पर पहुंचकर अपने सामान को अपने समेत सेट मात्र करना था। सीट पर ज्योंही पहुंचे ,हमने देखा हमारी तो दोनों सीट पर दो महानुभाव बड़े मज़े से सोये हुए हैं।

हमने उन्हें जगाया और कहा ," उठिये भाईसाहब ये तो हमारी सीट है ,हमारा रिजर्वेशन है। "

भाईसाहब हमें ऊपर से नीचे तक खा जाने वाली आँखों से देखने लगे। एक तो हमने उनकी नींद में खलल डाल दिया था और दूसरा उनका कहना था कि ये सीट तो उनकी है,उनका भी रिजर्वेशन था।

अब भई मैं तो झाँसी की रानी हूँ, फ़ौरन लड़ने के मूड में आ गई। अभी तक सब कुछ बढ़िया -बढ़िया चल रहा था,लेकिन भाईसाहब की वजह से सारी योजना खटाई में पड़ रही थी।

हमने कहा ," भाईसाहब आपका सेकंड टेअर में अपग्रडेशन हुआ होगा ,हमारा तो डायरेक्ट रिजर्वेशन है। "

भाईसाहब अपना टिकट दिखाते हुए बोले ," नहीं जी ,हमारा भी डायरेक्ट रिजर्वेशन है। "

अब तक टी टी महोदय भी हमारी बहस में शामिल हो गए थे। अब हमारा गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच चुका था। नितेश हमें शांत कर रहे थे।

लेकिन हम तो सबसे लोहा लेने के लिए तैयार थे।

मैंने कहा ,"अब भाई साहब आप ये कहेंगे कि ये ट्रैन तो जयपुर स्टेशन से शुरू नहीं होती।"

तब ही टी टी ने कहा ,"हाँ ,यह ट्रैन तो अजमेर से आती है। "

इतना सुनकर मैं थोड़ा शांत हुई। फिर मैंने पुछा ,"क्या यह कविगुरु एक्सप्रेस नहीं है ?"

टी टी ने जवाब दिया ,"नहीं ,आप लोग गलत ट्रैन में चढ़ गए हैं। " हमें काटो तो खून नहीं। मैं और नितेश एक दूसरे के बगलें झाँकने लगे।

नितेश ने अपने उन्हीं दोस्तों को फ़ोन किया; जो हमें स्टेशन तक छोड़ने आये थे ।

दोस्तों ने बताया कि ,"आप लोगों की ट्रैन में से कई लोग बड़ी जल्दबाजी में उतर रहे थे। "

अब हम समझ चुके थे की रेलवे ने उद्घोष्ना किसी और ट्रैन के लिए की थी और ट्रैन कोई और आ गई थी । अब मुझे खुद पर गुस्सा आ रहा था कि,जब मैंने अजमेर और कानपुर ट्रैन पर लिखा हुआ पढ़ लिया था तो दुबारा चैक क्यों नहीं किया।

टी टी ने बताया कि "आप अगले स्टेशन पर उतर जाएँ तथा आपकी ट्रैन तो पीछे आ ही रही है। अगले स्टेशन पर आप ट्रैन में चढ़ सकते हैं।"

हमारे पास कोई और विकल्प भी नहीं था ,इसलिए यही तय किया कि अगले स्टेशन पर उतर जाएंगे और अपनी ट्रैन में चढ़ने की कोशिश करेंगे। हम अगले स्टेशन से ट्रैन में चढ़ने में कामयाब हुए। लेकिन उस दिन के बाद से उद्घोष्ना पर आँख मूंदकर भरोसा करना बंद कर दिया है। अब तो ट्रैन का नाम और कहाँ जायेगी ये सब पढ़ने के बाद ही ट्रैन में चढ़ते हैं और अंदर बैठे यात्रियों से भी पूछकर तसल्ली कर लेते हैं।

इस प्रकार हमारी यात्रा यातना बनते बनते रह गयी। इसलिए यात्री स्वयं अपने सामान की सुरक्षा रखे अर्थात अपने आँख, कान और मुँह सभी इन्द्रियों का पूरा इस्तेमाल करे।


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