वतन की शान
वतन की शान


फोन की घंटी बजते ही रमा देवी तथा उनके पति राजेश बड़ी उत्सुकता तथा तीव्रता से फोन की ओर बढ़ते हैं। फोन पर उनका पोता आदित्य खुशी से चहक रहा था। दादी माँ-दादाजी मेरा फौज में लेफ्टिनेंट पद पर चयन हो गया है। जल्दी से मम्मी को बुलाओं।
मुझे उन्हें यह खुशखबरी देनी है। रमा देवी भगवान का लाख-लाख शुक्रिया अदा करते-करते न जाने कहाँ खो गई। इसी तरह की खुशखबरी आज से सताईस साल पहले उनके बेटे दीपक ने सुनाई थी। तब उन्होंने खुशी से भगवान के सभी द्वारों पर प्रसाद चढ़ाया तथा गली, मोहल्ले और रिश्तेदारों सभी का मुँह मीठा करवाया। दो साल बाद बड़ी धूमधाम से गाजे-बाजों के साथ सुंदर सलोनी नेहा को बहू के रूप में घर ले आई। शादी को अभी साल ही नहीं हुआ कि आतंकवादियों से लोहा लेते हुएए दीपक का पार्थिव शरीर तिरंगे में लिपटा हुआ आया।
नेहा उस समय दो महीने के गर्भ से थी। पहाड़ सी जिंदगी बेटी अकेली कैसे बिताएगी इसलिए मायके वाले बेटी का गर्भपात करवा के उसे अपने साथ ले जाना चाहते थे। बात उनकी भी सही थी। लेकिन इकलौते बेटे के शहीद हो जाने पर हमारा जीवन भी अंधकारमय हो गया था।
हम नेहा तथा उसके माता-पिता के आगे मनुहार करने लगे, इसके गर्भ में हमारे इकलौते बेटे की निशानी है। बेटा हो या बेटी उसका पालन-पोषण हम कर देंगे। इसके पश्चात आप अपनी बेटी को साथ ले जाना। इतने दिनों से पत्थर तथा मूकदर्शक बनी नेहा हमारे आँसू तथा मनुहार देख कर फूट पड़ी। मेरी गोदी में सिर रखकर बोली, माँ वतन पर एक बेटा कुर्बान हो गया है तो क्या हुआ। दूसरा वतन के लिए पैदा होने वाला है---।
बेटा चला गया तो क्या हुआ---। बेटी तथा अपनी अमानत आपके पास छोड़ गया है। नेहा जैसी बेटी पा हम गद-गद हो गए। उस दिन लगा न जाने कितने पुण्य कर्मों का फल आज हमने पा लिया। तभी रमा देवी की तंद्रा भंग होती है तथा खुशी से आवाजें लगाती है, बेटा नेहा जल्दी आओ आदित्य का फोन है।